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दर्द भरे 20 साल, हर स्वतंत्रता दिवस इनके लिए लाता है मायूसी, धेमाजी विस्फोट मामले में अब SC से उम्मीद

धेमाजी: हर साल स्वतंत्रता दिवस आता है। चारों ओर आजादी का जश्न मनाया जाता है। भारत के आजाद होने की शुभकामनाएं होती हैं और देशभक्ति के तराने होते हैं। मगर असम के धेमाजी के कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिनके लिए बीते 20 साल से स्वतंत्रता दिवस केवल मायूसी और दर्द लेकर आता है। हर साल वे उम्मीद लगाते हैं कि इस बार स्वतंत्रता दिवस वह अपनों को न्याय दिलाकर मनाएंगे, लेकिन कुछ नहीं होता। अब एक बार फिर धेमाजी विस्फोट में जान गंवाने वालों के परिवारों में उम्मीद जगी है। वे कहते हैं कि दोषियों को सजा न मिलने की टीस है, लेकिन अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है तो उनको न्याय जरूर मिलेगा।

दरअसल 2004 में असम के धेमाजी शहर में स्वतंत्रता दिवस पर परेड मैदान में झंडारोहण समारोह के दौरान हुए विस्फोट में तीन बच्चों सहित 12 लोगों की मौत हो गई थी। इस विस्फोट की जिम्मेदारी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) संगठन ने ली थी। पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और छह आरोपियों को गिरफ्तार किया। जिला और सत्र अदालत ने 2019 में मामले में चार आरोपियों को आजीवन कारावास और दो अन्य को चार साल जेल की सजा सुनाई थी। मगर इनको सबूतों के अभाव में पिछले साल हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। बस इसके बाद अपनों के लिए न्याय का इंतजार कर रहे परिवारों की उम्मीद टूट गई। मगर पिछले दिनों असम सरकार ने मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कही तो एक बार फिर उम्मीदें बंध गईं हैं।

इस विस्फोट में अपनों को खोने का दर्द सेवानिवृत्त शिक्षिका शांति गोगोई भी झेल रही हैं। शांति ने विस्फोट में अपनी गर्भवती बहू और उसके अजन्मे बच्चे को खो दिया। वे दोनों को न्याय दिलाने के लिए चौखट दर चौखट भटक रही हैं। अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो शांति गोगोई को कुछ उम्मीद बंधी है। वहीं न्याय मिलने में हुई देरी को लेकर गोगोई सवाल उठाती हैं कि सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुए बम धमाकों के बाद अब तक पुलिस को कोई भी गवाह नहीं मिला जो बता सके कि विस्फोटक किसने लगाए या इसके पीछे कौन था?