नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज शीर्ष कोर्ट के खिलाफ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज की आलोचनात्मक टिप्पणी पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने हाई कोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा की गयी टिप्पणियों को यह कहते हुए हटा दिया कि वे ‘निंदनीय और अनुचित थीं।
साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि देश में संविधान ही सर्वोच्च है। न को हाई कोर्ट और ना ही सुप्रीम कोर्ट। सुनवाई के दौरान मामले पर स्वत: संज्ञान लेने वाली पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की टिप्पणियों से आहत है। पीठ ने कहा कि शीर्ष कोर्ट के आदेश में कई चीजों के संबंध में अनावश्यक टिप्पणियां की गई हैं।
हालांकि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश राजबीर सहरावत के खिलाफ इन टिप्पणियों के लिए कार्यवाही शुरू करने से इनकार कर दिया। पीठ ने न्यायिक अनुशासन का उल्लेख करते हुए कहा कि भविष्य में उसे हाई कोर्ट द्वारा मामलों से निपटने के दौरान अधिक सावधानी बरतने की उम्मीद है।
क्या था मामला
हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राजवीर सेहरावत ने सुप्रीम कोर्ट के इस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया कि वह सांविधानिक रूप से हाईकोर्ट से उच्च अदालत है। 17 जुलाई के आदेश में जस्टिस सेहरावत ने हाईकोर्ट की ओर से शुरू की गई अवमानना कार्यवाही में स्थगन आदेश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की और हस्तक्षेप के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार पर भी सवाल उठाया।
जज ने लिखा था…
हाईकोर्ट जज ने आदेश में लिखा था, मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो इस प्रकार का आदेश मुख्य रूप से दो कारकों से प्रेरित होता है। पहला, इस तरह के आदेश के परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचने की प्रवृत्ति। दूसरा, सुप्रीम कोर्ट को वास्तव में जितना है उससे अधिक सर्वोच्च मानने और हाईकोर्ट को सांविधानिक रूप से जितना है उससे कम उच्च मानने की प्रवृत्ति।