श्रीलंका सरकार ने मंगलवार को कहा कि वह कोरोना महामारी के दौरान अंतिम संस्कार की विवादास्पद नीति अपनाने के लिए देश के मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से माफी मांगेगी। सरकार ने साल 2020 में कोरोना से हुई मौतों को लेकर एक आदेश जारी किया था। जिसमें अंतिम संस्कार के लिए मुसलमानों सहित अल्पसंख्यक समुदायों को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। बाद में इस फैसले की दुनियाभर में आलोचना हुई तो सरकार ने फरवरी 2021 में इसे रद्द कर दिया था।
द्वीप राष्ट्र के मंत्रिमंडल ने सोमवार एक बैठक की। बैठक में 2020 में किए गए फैसले के लिए मुस्लिम समुदाय से माफी मांगने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। मंत्रिमंडल ने सरकार की ओर से सभी समुदायों से माफी मांगने का फैसला किया है। इसके अलावा, मंत्रिमंडल ने एक कानून पेश करने का भी फैसला किया, ताकि इस तरह के विवादास्पद कदमों की पुनरावृत्ति न हो सके।
मंत्रिमंडल ने धार्मिक मान्यताओं के आधार पर शवों को दफनाने या उनका दाह संस्कार करने के लिए एक प्रस्तावित कानून को भी मंजूरी दी। यह कानून एक व्यक्ति या परिजनों को अपने विवेक पर मृत व्यक्ति को दफनाने या दाह संस्कार करने की अनुमति देता है।
देश के मुस्लिम समुदाय ने तब जबरन दाह संस्कार की नीति का विरोध किया था। कुछ ने तो अपने प्रियजनों के शवों को अस्पताल के मुर्दाघरों में ही छोड़ दिया था। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने कहा था कि उन्हें दाह संस्कार के लिए मजबूर किया गया। इस्लाम में दाह संस्कार हराम है। फरवरी 2021 में आदेश रद्द होने से पहले मुस्लिम समुदाय के 276 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था।
तब श्रीलंका की सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए मृतकों को दफनाने की अनुमति नहीं दी थी। उसने कुछ विशेषज्ञों का हवाला देते हुए दावा किया था कि कोविड-19 से मरे लोगों को दफनाने से पानी दूषित हो जाएगा, जिससे महामारी और फैल जाएगी।