तिरुवनंतपुरम:कर्नाटक सरकार द्वारा लाए गए प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण लागू करने के विधेयक की कांग्रेस की कार्य समिति के सदस्य और सांसद शशि थरूर ने आलोचना की। उन्होंने इस विधेयक को असंवैधानिक और नासमझी भरा फैसला बताया। साथ ही उन्होंने विधेयक को पारित करने से रोकने पर कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार की सराहना की।
तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर ने कहा कि कर्नाटक यह फैसला मूर्खतापूर्ण था। अगर हर राज्य ऐसा कानून लाने लगा तो यह असंवैधानिक होगा। उन्होंने कहा कि संविधान में देश के हर नागरिक को कहीं भी स्वतंत्र रूप से रहने, काम करने और यात्रा करने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा कि पहले हरियाणा सरकार भी ऐसा ही एक विधेयक लाई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। थरूर बोले कि पता नहीं कर्नाटक सरकार ने क्या सोचकर और किस आधार पर यह विधेयक बनाया। अगर यह कानून आता है तो कर्नाटक के व्यवसाय तमिलनाडु और केरल जैसे पड़ोसी राज्यों में स्थानांतिरत हो जाएंगे।
कर्नाटक में आरक्षण को लेकर क्या विधेयक था?
राज्य सरकार ने निजी क्षेत्र में प्रबंधकीय और लिपिकीय नौकरियों को कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षित करने के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार किया था। सरकार ने इस मसौदे को ‘कर्नाटक राज्य उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के रोजगार विधेयक, 2024’ नाम दिया। इस विधेयक को सोमवार को कैबिनेट में मंजूरी दी गई। विधेयक में कहा गया था कि प्रबंधन श्रेणी में 50 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होनी चाहिए। वहीं गैर-प्रबंधन श्रेणी की नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। यह आरक्षण उन्हीं लोगों को मिलेगा जो कर्नाटक राज्य में पैदा हुए हैं और 15 वर्षों से राज्य में रह रहे हैं। दूसरी शर्त यह भी थी कि उम्मीदवार को कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम होना चाहिए और इसने कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा उत्तीर्ण की हो।
विरोध के बाद लिया गया वापस
कई उद्योगपतियों ने बुधवार को इस विधेयक का विरोध जताया। उन्होंने कहा कि यह भेदभावपूर्ण है और आशंका जताई कि टेक उद्योग को नुकसान हो सकता है। विधेयक पर उठे विवाद के बीच मुख्यमंत्री ने बुधवार दोपहर को ट्वीट में कहा कि कैबिनेट बैठक में राज्य के उद्योगों और अन्य प्रतिष्ठानों में प्रबंधक पदों पर 50 फीसदी जबकि गैर प्रबंधक पदों पर 75 फीसदी आरक्षण तय करने वाले विधेयक को मंजूरी दी गई। जब विरोध नहीं थमा तो बुधवार रात को ही मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान जारी किया कि विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। सीएमओ ने आगे कहा कि आगामी दिनों में इस विधेयक की समीक्षा की जाएगी और इस पर निर्णय लिया जाएगा।