नई दिल्ली : आधार अधिनियम जैसे कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। अब सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक पीठ गठित करने पर विचार कर रहा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से अपील करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाओं की सूचीबद्ध करने की जरूरत है ताकि उन पर सुनवाई हो सके।
याचिकाओं में सरकार पर लगाए गए आरोप
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘जब मैं संविधान पीठों का गठन करूंगा, तब इस पर फैसला लूंगा।’ दरअसल धन विधेयक को लेकर विवाद तब उठा जब सरकार ने आधार अधिनियम और धन शोधन निवारण अधिनियम में कई संशोधनों को धन विधेयक के रूप में पेश किया था। इसके चलते इन विधेयकों को राज्यसभा में पेश नहीं किया गया, जहां सरकार के पास बहुमत नहीं था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने राज्यसभा को दरकिनार करने के लिए ही कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित कराया।
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था, लेकिन इसने इस मुद्दे को खुला रखा कि क्या पीएमएलए में संशोधन को धन विधेयक के रूप में पारित किया जा सकता है। इस सवाल पर सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार किया जाना था। सात जजों की पीठ पहले से ही धन विधेयक को परिभाषित करने के संवैधानिक प्रश्न और किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने के लोकसभा स्पीकर के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के दायरे पर विचार कर रही है।
क्या होता है धन विधेयक
गौरतलब है कि धन विधेयक एक ऐसा विशेष विधेयक है, जिसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। और राज्यसभा उसमें संशोधन या अस्वीकृति नहीं कर सकती। उच्च सदन सिर्फ सिफारिशें कर सकता है और लोकसभा द्वारा उन सिफारिशों को माना भी जा सकता है और नहीं भी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित मनी बिल, टैक्स, सार्वजनिक खर्च आदि जैसे वित्तीय मामलों से संबंधित है। राज्यसभा इस विधेयक में संशोधन या अस्वीकृति नहीं कर सकती।