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ग्राम न्यायालयों से जल्द मिलेगा न्याय, लंबित नहीं रहेंगे मुकदमे, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

 नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना को लेकर तेजी से काम करने के लिए कहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्राम न्यायालय से लोगों को सुलभता और अपने दरवाजे पर ही तेजी से न्याय मिलेगा। इसके अलावा ट्रायल कोर्ट में लंबित मामलों में कमी आएगी। कोर्ट ने 2008 में कानून पारित होने के बाद ग्राम न्यायालयों की स्थापना में तेजी लाने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिव और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को ग्राम न्यायालयों की स्थापना, कामकाज और मौजूदा बुनियादी ढांचे का विवरण देते हुए छह सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

न्यायाधीश बीआर गवई और केवी विस्वनाथन ने एनजीओ नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस और अन्य द्वारा 2019 में दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में सभी केंद्र और राज्य सरकारों को ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था कि ग्राम न्यायालय के लिए उच्च न्यायालय की सलाह पर राज्य सरकार न्यायाधिकारी नियुक्त करेगी।

शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि कानून पारित होने के 16 साल बाद भी देश में केवल 264 ग्राम न्यायालय कार्यरत हैं। कानून पारित होने के बाद से अब तक छह हजार ग्राम न्यायालय स्थापित हो जाने चाहिए थे। इस पर पीठ ने कहा कि ग्राम न्यायालय की स्थापना से लोगों को त्वरित न्याय मिलेगा। साथ ही ट्रायल कोर्ट में लंबित मामले कम होंगे। पीठ ने कहा कि न्याय के अधिकार में सुलभ न्याय का अधिकार भी शामिल है।

पीठ ने सभी राज्य सरकार के मुख्य सचिव और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को ग्राम न्यायालय की स्थापना, कामकाज के बारे में छह सप्ताह में शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही यह भी निर्देश दिए कि शपथ पत्र में न्यायालयों की स्थापना के लिए मौजूद बुनियादी ढांचे का भी जिक्र किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शपथ पत्र दाखिल करने से पहले राज्य सरकार के मुख्य सचिव और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल बैठक करके ग्राम न्यायालय की स्थापना को लेकर बनाई गई योजना पर चर्चा कर लें। मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी।