वाराणसी: आंखों की रोशनी कमजोर होना अबतक बढ़ती उम्र के लोगों की बीमारी मानी जाती थी लेकिन अब नवजात बच्चों में ऐसी समस्या बढ़ रही है। आईएमएस बीएचयू के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में 10-15 दिन के बच्चों को लेकर अभिभावक पहुंच रहे हैं, जिनको आंखें सहीं से नहीं खुल पा रही हैं। जांच के बाद पता चल रहा है कि बच्चों के आंख के पर्दे कमजोर हैं।
आईएमएस बीएचयू के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान के डॉक्टरों के अनुसार हर सप्ताह पांच से सात ऐसे केस आ रहे हैं, जिनकी जांच और अभिभावकों से बातचीत के बाद पता चला है कि कोई बच्चा सातवें तो कोई आठवें महीने में पैदा हुआ है। समय से पहले जन्मे और कम वजन वाले बच्चों में इस तरह की समस्या अधिक हो रही है। जांच के बाद उनका बेहतर इलाज किया जा रहा है।
एक माह बाद कम हो जाती है संभावना
क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दीपक मिश्रा का कहना है कि आंख का परदा कमजोर होने जैसी समस्या नवजात बच्चे में जन्म से एक माह तक ज्यादा रहती है। चिकित्सकीय भाषा में इसको रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी यानी आरओपी कहा जाता है।
त्रिनेत्र से मिलती है परदे की सही जानकारी
बीएचयू अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ और एनआईसीयू के नोडल अधिकारी प्रो. अशोक चौधरी का कहना है कि एनआईसीयू में इस समय ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जिनके आंख का परदा कमजोर हो रहा है। एनआईसीयू में अल्ट्रासाउंड जैसी मशीन गई हैं, जिसे त्रिनेत्र कहा जाता है। इसकी मदद से बच्चों के परदे की सही तस्वीर स्क्रीन पर आ जाती है। एनआईसीयू में भर्ती बच्चों की त्रिनेत्र से जांच की जा रही है। जरूरत के हिसाब से क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में आगे के इलाज के लिए भेजा जाता है।
सेकाई और इंजेक्शन से दूर होती है परेशानी
क्षेत्रीय नेत्र संस्थान के विभागाध्यक्ष प्रो. प्रशांत भूषण ने बताया कि खून की धमनिया कमजोर होने से भी यह बीमारी होती है। कभी-कभी नवजात बच्चों को हाई प्रेशर ऑक्सीजन दी जाती है। इससे भी आंख के परदे पर असर पड़ता है। ऐसे बच्चों को जरूरत के हिसाब से इंजेक्शन देने से यह ठीक हो जाती है। साथ ही जरूरत के हिसाब से सेकाई की जाती है।