हाथरस:साकार विश्वहरि भोले बाबा के सत्संग में शामिल होने आने वाले अनुयायियों को तनिक भी भान न था कि ऐसा भी होगा। पिछले कई दिन से चल रही तैयारियों के बीच तीन मिनट की भगदड़ ने मौत का ऐसा तांडव मचाया कि जिसने भी सुना उसके हाथ पांव फूल गए। पुलिस प्रशासनिक अमला तो यह ही नहीं समझ पाया कि आखिर हादसा कितना बड़ा है और क्या करना है। बस जिसको जहां जैसे जगह मिली, उसने शवों व घायलों को अस्पतालों की ओर भिजवाना शुरू कर दिया।
इसके बाद मौके पर जो हालात थे, वह वाकई रौंगटे खड़े कर देने वाले थे। एक तो वहां लोग बिलखते हुए अपनों को तलाश रहे थे। दूसरा पुलिस प्रशासन की ओर से वहां ऐसे कोई इंतजाम नहीं थे, जिससे उन्हें उनके अपनों तक पहुंचाया जा सके या मिलवाया जा सके। देर शाम तक अव्यवस्थाओं का आलम था और लोग अपनों की तलाश में भटक रहे थे।
जिस वक्त यह हादसा हुआ, उस समय बस यातायात प्रबंधन के लिए नेशनल हाईवे यानि पुराने जीटी रोड पर सिकंदराराऊ पुलिस की ड्यूटी थी। भीड़ निकलने के दौरान सड़क पर किसी के साथ कोई हादसा न हो, इसके लिए यह ड्यूटी लगाई थी। इसके चलते कानपुर की ओर से आने वाले यातायात को रोक कर रखा गया था। मंच स्थल से हाईवे तक बाबा के काफिले को निकालने के लिए एक बाईपास आयोजकों ने बनाया था। भीड़ सड़क पर दोनों ओर जमा थी। प्रयास था कि बाबा का काफिला जब निकलेगा तो वे उन्हें एक झलक देखकर नतमस्तक हो सकेंगे और फिर काफिले की चरण धूल ले सकेंगे। उन्हें सेवादारों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। जैसे ही काफिला निकला। अचानक भीड़ अनियंत्रित हुई। वहीं भगदड़ मच गई। इसके बाद जो हालात बने। वे किसी से छिपे नहीं हैं।
आसपास के जिलों में भेजे गए घायल
पुलिस ने एटा मेडिकल कॉलेज, ट्रामा सेंटर सिकंदराराऊ, जिला मुख्यालय हाथरस व मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ भिजवाया। उस समय तो स्थिति यह थी कि जो हाथ लग जाए या नजर आ जाए, उसे एंबुलेंस या वाहन में लादकर भिजवाया जा रहा था। वहां न उसकी पहचान पूछी जा रही थी और उसके किसी परिचित का इंतजार किया जा रहा था। वाकई बेहद दुखद या कष्टप्रद था कि दोपहर लगभग दो बजे हुई घटना के बाद शाम पांच से छह बजे तक भी प्रशासन ने मौके पर कोई राहत या आपदा कैंप नहीं बनवाया गया था। न कोई ऐसा प्रतिनिधि बैठाया गया था, जो वहां अपनों को खोज रहे लोगों को संतुष्ट कर सके। ये बता सके कि आपका रिश्तेदार फलां अस्पताल में है। सभी अपने हाल पर बिलख रहे थे। जैसे जो जानकारी मिल रही थी। वहां दौड़े चले जा रहे थे।
ट्रॉमा सेंटर में न ऑक्सीजन न बिजली और न स्टाफ
हादसे के लिए सिकंदराराऊ स्थित ट्रॉमा सेंटर तैयार नहीं था। यहां चिकित्सक, स्टाफ और ऑक्सीजन तक नहीं थी। कराहते हुए घायल पहुंचते रहे और उपचार न मिलने से दम तोड़ते रहे। टॉमा सेंटर पर करीब 2.45 बजे शवों और घायलों को लाना शुरू हुआ। हालात ऐसे थे कि न मौके पर चिकित्सक थे और न ही पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद था। बिजली तक नहीं थी। बदहवास हालत में पहुंचे घायलों को ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन वह भी नहीं मिली। बिजली न होने के कारण कमरों में पंखे बंद पड़े थे। कमरों में अंधेरा छाया था। एंबुलेंस से आए घायलों को ऑक्सीजन के लिए सत्संग स्थल से साथ में आए परिजन व अन्य लोग अंदर कक्षों तक लेकर पहुंचे, लेकिन यहां तत्काल उपचार नहीं मिलने के कारण कई घायलों ने दम तोड़ दिया।