पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन से प्रभाव से चिंतित पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने सरकारी योजनाओं के बारे में खुलकर बात की है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने इसके क्रियान्वयन पर ठीक प्रकार से ध्यान नहीं दिया। इस कारण यह प्रक्रिया बहुत कमजोर हो गई है। हालांकि मोदी सरकार ने इसके लिए नई परियोजनाएं बनाईं, लेकिन उनको ठीक प्रकार से लागू नहीं करा पाए। न ही आम जनता से उनकी राय ले पाए।
शीर्ष पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने बताया कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई पहलों पर ध्यान केंद्रित किया। जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाना, वन क्षेत्र में सुधार, मरुस्थलीकरण से निपटना, वायु प्रदूषण को कम करना, आर्द्रभूमि का संरक्षण, सभी घरों में पीने योग्य पाइप पेयजल उपलब्ध कराना और एकल-उपयोग प्लास्टिक का उन्मूलन शामिल है। उन्होंने कहा कि दूसरी मोदी सरकार के पास पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सही इरादे थे, लेकिन क्रियान्वयन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने बताया कि यदि आप सरकार की नीतियों को गौर से देखें, तो आप यह तर्क नहीं दे सकते कि कुछ भी गलत था। नवीकरणीय ऊर्जा, पेयजल, अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कई बिंदुओं पर विचार किया गया। सुनीता नारायण ने बताया कि सरकारों ने लगातार पर्यावरण मंजूरी प्रणाली को इस हद तक कमजोर कर दिया है कि यह अब काम नहीं करती।
लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाए
भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लगातार तीसरे कार्यकाल के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में वन, वन्यजीव और पर्यावरण कानूनों में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के महानिदेशक के अनुसार, पर्यावरण से संबंधित प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए नई कल्पना की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि “सरकार के बहुत से कार्यक्रम ऐसे स्तर पर पहुंच गए हैं जहां हम लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए हैं। उन्होंने बताया कि हम नदियों की सफाई के सवाल को लेते हैं। हम अपनी नदियों को साफ नहीं कर पाए हैं। अभी भी ऐसी स्थिति है कि जहां हम अपनी नदियों से साफ पानी ले रहे हैं वहीं उन्हें सीवेज वापस दे रहे हैं।”