आबादी में खसरे के प्रसार का पता लगाने के लिए देश के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक खोजी है। यह तकनीक सस्ती होने के साथ ही 99 फीसदी तक असरदार है। वैज्ञानिकों ने जीवित वायरस का उपयोग करके इसजांच तकनीक की खोज की है जो लोगों में एंटीबॉडी की पहचान करने में सक्षम है। यह तकनीक कुछ दिनों बाद देश में होने वाले राष्ट्रीय सीरो सर्वे में मददगार होगी।
जानकारी के अनुसार, पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने खसरे का पता लगाने के लिए एक स्वदेशी खसरा रोधी आईजीएम एलिसा परीक्षण विकसित किया है। इंसानों के सीरम में मौजूद एंटीबॉडी से बीमारी के फैलाव का आकलन किया जा सकता है।
एनआईवी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि खसरे के वायरस से फॉर्मेलिन निष्क्रिय एंटीजन का उपयोग करके यह तकनीक विकसित की है जिसका इस्तेमाल मरीज की त्वचा पर दाने दिखाई देने के बाद भी की जा सकती है। उन्होंने बताया कि सरकार ने राष्ट्रीय खसरा और रूबेला उन्मूलन मिशन के तहत 2026 तक खसरा के मामले प्रति 10 लाख की आबादी पर एक से नीचे ले जाने का लक्ष्य रखा है जो मौजूदा समय में करीब चार है।
डब्ल्यूएचओ भी गंभीर
नवंबर 2023 में जारी रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जानकारी दी है कि साल 2022 में भारत में अनुमानित 11 लाख बच्चों को खसरे के टीके की पहली खुराक नहीं मिली जिससे भारत उन 10 देशों में शामिल हो गया, जहां महामारी के बाद भी खसरे के टीकाकरण में सबसे ज्यादा अंतर है।
एक से छह हजार में उपलब्ध
बाजार में यह जांच किट एक से लेकर छह हजार रुपये तक में उपलब्ध है। आगामी दिनों में आईसीएमआर की यह किट 200 से 250 रुपये तक में मिल सकती है। दरअसल खसरा संक्रमण छोटे बच्चों के लिए गंभीर और घातक भी हो सकता है। आईसीएमआर ने जांच किट के उत्पादन को लेकर देश के निजी कंपनियों से आवेदन मांगा है। कानूनी तौर पर एमओयू होने के बाद किट के परीक्षण में एनआईवी वैज्ञानिकों की टीम सहायता करेगी। यह प्रक्रिया दो चरणों में होगी जिसकी पूरी जानकारी आईसीएमआर ने आवेदन के साथ उपलब्ध कराई है।