लखीमपुर खीरी : यूपी की राजधानी लखनऊ से 130 किलोमीटर दूर घाघरा से गोमती तक लखीमपुर-खीरी की जमीन सोना उगलती है। यह इलाका किसानों का गढ है और यहां से केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी भाजपा के टिकट पर फिर मैदान में हैं। उनके लिए हैट्रिक लगाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि तिकुनिया कांड में चार किसानों की मौत का मामला उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। विपक्षी गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है। सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा और बसपा ने पंजाबी समाज के अंशय कालरा को उतारकर अजय मिश्र की तगड़ी घेराबंदी की है।
अजय मिश्रा को दूसरी बार जीतने का इनाम मिला। उनको केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बना दिया गया। वह अपनी जनसभाओं में मोदी-योगी का गुणगान करते हैं। मोदी-योगी के नाम पर वोट मांगते हैं। वह लोगों के बीच राम मंदिर व धारा 370 की बात भी करते हैं और कहते हैं कि यह मोदी सरकार के कारण संभव हो पाया है। सपा ने इंडी गठबंधन से पहले ही यह सीट अपने खाते में डाल ली थी। दो बार के विधायक रहे उत्कर्ष वर्मा को टिकट दे दिया। बहरहाल कांग्रेस ने गठबंधन के बाद इस सीट को सपा के खाते में डाल दिया। गठबंधन महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक के साथ ही गन्ना किसानों के मुद्दों पर हमलावर है। बसपा के अंशय कालरा किसानों-गरीबों और युवाओं की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश कर रहे हैं।
वर्मा परिवार के रुख पर सबकी नजर
खीरी की सियासत में वर्मा परिवार का दबदबा रहा है। 1980 में बालगोविंद ने कांग्रेस की झोली में सीट डालकर चौथी बार जीत दिलाई थी। उनके निधन के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी ऊषा वर्मा जीतीं। 1984 और 1989 में भी ऊषा वर्मा ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली। 1991 और 96 में गेंदालाल कन्नौजिया ने यहां भगवा परचम फहराया। 1998 में सपा ने ऊषा के बेटे रविप्रकाश वर्मा को टिकट दिया और खीरी में पहली बार साइकिल दौड़ी। उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई। पिछले चुनाव में उनकी बेटी पूर्वी सपा से मैदान में उतरीं, लेकिन हार गईं। इस बार वर्मा परिवार का कोई चुनाव मैदान में नहीं है, पर सबकी नजर उनके परिवार के रुख पर है।
आमजन में बहुत सवाल हैं
हम चुनावी माहौल जानने के लिए निघासन रोड पर निकले। दुकान चलाने वाली विंकी गुप्ता चुनावी मुद्दों को लेकर पूछे सवाल पर कहती हैं, यहां मजदूरों को महज 300 रुपये दिहाड़ी मिलती है। आप ही बताइए, ऐसे में वह कैसे गुजारा करेगा? महंगाई की मार से जनता त्रस्त है। अंबुपुर के रहने वाले वरिंदर गिरी कहते हैं, हमारे 25 गांवों में एक भी हाईस्कूल नहीं है। अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वे एक बच्चे अंकुश को बुलाकर कहते हैं, देखिए, यह बच्चा तीन किलोमीटर पैदल जाता है, वह भी निजी स्कूल में पढ़ने के लिए। वहीं किसान विजयपाल कहते हैं, हमें फसल बेचने के लिए कमीशन देना पड़ता है। कीटनाशक ब्लैक में मिलता है।