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बसपा ने सपा को फिर पछाड़ने की जुगत लगाई, साइकिल की हवा निकालने के लिए नई रणनीति से घेराबंदी

बसपा ने सपा को पछाड़कर लोकसभा चुनाव में खुद को दूसरी सबसे ज्यादा सांसदों वाली पार्टी बनाने के लिए अपनी रणनीति में कई अहम बदलाव किए हैं। पार्टी ने सपा की जीती हुई सीटों पर ऐसे प्रत्याशी उतारे हैं, जो सपा को नुकसान पहुंचाने का दमखम रखते हैं। बता दें कि बसपा ने पिछला लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था, जिसमें बसपा को 10 जबकि सपा को 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। सपा की जीती हुई पांच सीटों में से आजमगढ़ में भाजपा ने उपचुनाव में बाजी मार ली थी। जबकि रामपुर के सांसद आजम खां की सदस्यता समाप्त होने के बाद भाजपा के घनश्याम लोधी जीते थे।

इस बार भी सपा को इन पांच सीटों पर जीत की उम्मीद है, लेकिन बसपा ने उसके प्रत्याशियों के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है। बसपा ने मैनपुरी में सपा सांसद डिंपल यादव के खिलाफ शिव प्रसाद यादव को टिकट दिया है। इसी तरह रामपुर में सपा प्रत्याशी इमाम मोहिब्बुल्लाह का मुकाबला करने के लिए जीशान खान को टिकट दिया है।

मुरादाबाद में सपा ने सांसद एचटी हसन की जगह रुचि वीरा को टिकट दिया है, जबकि बसपा ने मोहम्मद इरफान सैनी को मैदान में उतारकर सपा के पाले में जाने वाले मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की व्यूहरचना बनाई है। संभल से भी सपा के जियाउर्रहमान के सामने बसपा ने शौलत अली को टिकट दिया है, जिससे मुस्लिम वोट बैंक बिखर सकता है।

आजमगढ़ में बदली रणनीति
बसपा ने पहले आजमगढ़ में अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को टिकट दिया था, लेकिन अब उन्हें सलेमपुर से चुनाव लड़वाने का फैसला लिया है। अब बसपा आजमगढ़ में ऐसे किसी कद्दावर नेता को टिकट देने की तैयारी में है, जो सपा को शिकस्त दे सके। यदि बसपा की रणनीति सफल रही तो भाजपा और सपा की लड़ाई में बसपा को फायदा मिल सकता है।

कई बड़े नेताओं ने छोड़ा साथ
लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिलने के बाद सपा ने विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारने की कवायद तो की, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसके साथ आए कई प्रमुख नेताओं ने दूरी बना ली है। इसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। रालाेद अध्यक्ष जयंत चौधरी, सुभासपा अध्यक्ष ओपी राजभर, विधायक दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी, स्वामी प्रसाद मौर्या, पल्लवी पटेल व केके गौतम जैसे तमाम बड़े नेता अब सपा के साथ नहीं हैं। इंडिया गठबंधन में भी जगह नहीं मिलने पर स्वामी प्रसाद मौर्या नाराजगी भी जता चुके हैं।