फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता के प्रस्ताव पर अमेरिका ने वीटो कर दिया है। गुरुवार को 15 देशों वाली परिषद ने फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पूर्ण सदस्यता के प्रस्ताव पर वोटिंग की। प्रस्ताव को पारित करने के लिए कम से कम 9 परिषद सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी। फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बनाने के प्रस्ताव के पक्ष में 12 वोट पड़े, वहीं स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन वोटिंग में शामिल नहीं हुए। हालांकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अमेरिका द्वारा इस प्रस्ताव को वीटो कर दिया गया, जिससे यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। अभी फलस्तीन संयुक्त राष्ट्र का गैर सदस्यीय देश है। साल 2012 में फलस्तीन को यह दर्जा दिया गया था। इसके तहत फलस्तीन संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाही में भाग ले सकता है, लेकिन किसी प्रस्ताव पर वोट नहीं कर सकते। फलस्तीन के अलावा वेटिकन सिटी भी संयुक्त राष्ट्र का गैर सदस्यीय देश है।
अमेरिका ने प्रस्ताव पर वीटो लगाने की बताई ये वजह
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के प्रतिनिधि रॉबर्ट वुड ने वीटो पावर के इस्तेमाल पर सफाई देते हुए कहा कि ‘अमेरिका ये मानता है कि फलस्तीन को अलग देश का दर्जा देने का सबसे सही रास्ता इस्राइल और फलस्तीन के बीच सीधी बातचीत ही है, जिसमें अमेरिका और अन्य सहयोगी देश मदद करें। अमेरिका का ये वोट फलस्तीन को अलग देश का दर्जा देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन हमारा मानना है कि यह दोनों पक्षों में सीधे बातचीत के जरिए ही होना चाहिए।’
रॉबर्ट वुड ने कहा कि हमने लंबे समय पहले कहा था कि फलस्तीन को देश का दर्जा पाने के लिए कई संशोधन करने होंगे। अभी गाजा में एक आतंकी संगठन हमास सत्ता में है और प्रस्ताव में हमास को फलस्तीन का अभिन्न अंग बताया गया है। इस वजह से अमेरिका ने प्रस्ताव पर वीटो किया है। वुड ने बताया कि 7 अक्तूबर को इस्राइल पर हुए हमले के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने साफ किया था कि क्षेत्र में दो देशों के प्रस्ताव से ही शांति आ सकती है। एक लोकतांत्रिक यहूदी राष्ट्र की सुरक्षा और भविष्य के लिए इससे दूसरा रास्ता नहीं है। फलस्तीनियों के शांति से रहने का भी दूसरा कोई रास्ता नहीं है।
फलस्तीन ने जताई निराशा
संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन के प्रतिनिधि रियाद मंसूर ने अमेरिका द्वारा प्रस्ताव पर वीटो लगाने के फैसले पर निराशा जताई, लेकिन साथ ही प्रस्ताव को समर्थन देने वाले देशों को धन्यवाद भी कहा। उन्होंने कहा कि फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने का मतलब शांति में निवेश है। फलस्तीन ने इससे पहले साल 2012 में भी संयुक्त राष्ट्र के पूर्ण सदस्य बनाने की मांग उठाई थी, लेकिन उस वक्त भी सुरक्षा परिषद में इस पर सहमति नहीं बन सकी थी। किसी भी देश को संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ ही आम सभा से भी मंजूरी मिलना जरूरी है। वोटिंग के समय दो तिहाई सदस्यों का मौजूद रहना भी जरूरी है।