Thursday , November 7 2024
Breaking News

मतदाताओं का बड़े दलों पर भरोसा कायम, इस बार साफ नहीं मिजाज, अब तक ये रहा है इतिहास

सीतापुर: संसदीय सीट सीतापुर के मतदाताओं ने आजादी के बाद से अब तक बड़े दलों (राष्ट्रीय पार्टियों) पर ही भरोसा जताया है। एक बार का चुनाव छोड़ दें, तो अब तक हुए 17 लोकसभा के चुनाव में वोटरों ने 16 बार जीत का ताज कांग्रेस, जनसंघ, बीएलडी, भाजपा, बसपा इत्यादि राष्ट्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों को पहनाया है। हालांकि, 1996 में मतदाताओं ने सपा प्रत्याशी पर भी दरियादिली दिखाकर संसद पहुंचाया है। इस बार भी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही मुख्य मुकाबला होने के आसार हैं।

बहरहाल, वोटर का मिजाज इस बार फिलहाल साफ नहीं है। चुनावी शंखनाद के बाद से सियासी बयार तेज जरूर हो गई है। सीतापुर लोकसभा क्षेत्र का गठन पहली लोकसभा के साथ 1951 में हुआ था। पहले चुनाव में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी उमा नेहरू जीतीं थीं। 1957 का चुनाव भी उन्हीं के नाम रहा। फिर 1962 में जनसंघ के सूरज वर्मा ने उमा नेहरू का विजयरथ रोककर सीट पर कब्जा कर लिया। 1967 के चुनाव में जनसंघ का टिकट पूर्व प्रधानमंत्री अटल के सहयोगी शारदानंद दीक्षित को दिया गया।

शारदानंद ने कसौटी पर खरे उतरते हुए विजय पताका फहरा दी। 1971 के चुनाव में कांग्रेस के जगदीश चंद दीक्षित ने शारदानंद का तख्ता पलट दिया। 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल के हरगोविंद वर्मा का डंका बजा। वर्ष 1980-84 और 86 के चुनाव में कांग्रेस की राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी ने लगातार जीत दर्ज कर सीतापुर संसदीय सीट के इतिहास में पहली बार हैट्रिक तो लगाई, मगर 1991 में भाजपा के जनार्दन प्रसाद मिश्र ने इन्हें शिकस्त देकर चौथी बार जीतने से रोक दिया।

– 1996 के चुनाव में जनता ने फिर बदलाव करते हुए सपा के मुख्तार अंसारी को कुर्सी सौंप दी। इस साल वोटरों का भरोसा राष्ट्रीय पार्टियों से डगमगा गया। हालांकि, 1998 में फिर भाजपा के जनार्दन प्रसाद मिश्र पर भरोसा जताते हुए जनता ने उन्हें जिता दिया। 1999 से लेकर 2004 और 2009 में यह सीट बसपा के कब्जे में रही। 1999 तथा 2004 में बसपा के राजेश वर्मा, जबकि 2009 में कैसरजहां यहां से सांसद निर्वाचित हुईं। 2014 के चुनाव में कभी बसपाई रहे राजेश वर्मा ने भाजपा का दामन थाम लिया।