बिहार के एक छोटे से गांव चांदवा से दिल्ली की राजनीति तक का सफर करने वाले बाबू जगजीवन राम दलितों, गरीबों और वंचितों के मसीहा माने जाते थे। उन्होंने दलित समाज को स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने से लेकर जगन्नाथ मंदिर में पत्नी संग दर्शन करने तक उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। हालांकि राजनीति में उनकी भूमिका इतनी दमदार रही कि 50 सालों तक सांसद रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। बाबू जगजीवन राम 1936 से 1986 तक सांसद रहे। कहते हैं कि इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाने को कहा था, हालांकि बाद में दोनों के बीच दूरियां आ गईं। बाद में जनता पार्टी से चुनाव जीतकर भी प्रधानमंत्री पद की मजबूत दावेदारी में रहे लेकिन पद न मिल सका। 5 अप्रैल को बाबू जगजीवन राम की जयंती के मौके पर जानिए कि दमदार राजनीतिक उपलब्धियों के बाद भी आखिर जगजीवन राम क्यों न बन सके देश के प्रधानमंत्री।
कौन थे बाबू जगजीवन राम
जगजीवन राम भारत के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके हैं। भारत के संसदीय लोकतंत्र के विकास में उनका अमूल्य योगदान रहा। साथ ही देश की दलित राजनीति के वह सबसे महत्वपूर्ण चेहरे के तौर पर याद किए जाते हैं।
जगजीवन राम का जीवन परिचय
जगजीवन राम का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के चांदवा गांव में 5 अप्रैल 1908 में हुआ था। उनके पिता का नाम सोभी राम और मां वसंती देवी थी। आरा टाउन स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। हालांकि उन्हें दलित होने के कारण शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन दिनों जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
जगजीवन राम का योगदान
स्वतंत्रता संग्राम में दलित समाज को शामिल करने का श्रेय जगजीवन राम को जाता है। 1934 में उन्होंने कोलकाता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की थी। इस संगठन के माध्यम से दलित समाज को आजादी की लड़ाई में शामिल किया गया।