रंगों के त्योहार होली की देशभर में धूम है। ये त्योहार अपने साथ खूब सारी खुशियां और उत्सव लेकर आता है। तरह-तरह की मिठाइयां, रंग-गुलाल और लोगों से मेल-मिलाप होली को और भी खास बना देते हैं। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि होली के उमंग-उत्साह के बीच अपनी सेहत का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। विशेषतौर पर जिन लोगों को पहले से ही सांस की समस्या जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस या फिर फेफड़ों की बीमारी है उन्हें और भी अलर्ट हो जाना चाहिए।
होली के दिन चारों तरफ उड़ रहे रंग-गुलाल, सांस की समस्याओं के शिकार लोगों की लिए परेशानियां बढ़ा सकते हैं। वातावरण में फैले गुलाल के कारण आपको सांस लेने में दिक्कत, सांस फूलने की समस्या हो सकती है। रंग-गुलाल के कारण कुछ लोगों की एलर्जी भी ट्रिगर हो सकती है जिसमें सांस लेना कठिन हो जाता है।
रंग-गुलाल से ट्रिगर हो सकती है सांस की दिक्कत
अस्थमा, फेफड़ों की गंभीर बीमारी है जिसमें वायुमार्ग में सिकुड़न और सूजन हो जाती है। इससे सांस लेने में कठिनाई, खांसी और सीने में दर्द का खतरा होता है। वातावरण की कई प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण अस्थमा रोगियों की स्वास्थ्य जटिलाताएं बढ़ने का खतरा रहता है। रंग-गुलाल और इसके कारण वातावरण में बढ़ा प्रदूषण भी इसका एक जोखिम कारक हो सकता है।
एक अध्ययन के मुताबिक होली के रंग-गुलाल के पाउडर में बहुत से छोटे कण हो सकते हैं जिससे न सिर्फ फेफड़ों की दिक्कत बढ़ जाती है साथ ही ये आपके श्वसन तंत्र के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर सकते हैं। यही कारण है कि जिन लोगों को पहले से ही अस्थमा या सांस की दिक्कत रही है उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए।
होली और अस्थमा की समस्या
अमर उजाला से बातचीत में बेंगलुरु स्थित मणिपाल हॉस्पिटल में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की डॉक्टर शीतल चौरसिया बताती हैं, होली के त्योहार में अस्थमा रोगियों को अपनी सेहत को लेकर सावधान रहने की जरूरत होती है। गुलाल के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है जिससे खांसी, सांस लेने में दिक्कत और कभी-कभी रेस्पोरटरी फेलियर तक की समस्या हो सकती है।