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बीजेपी और संघ को कुछ तथ्य याद करने चाहिए

राकेश कायस्थ

आजादी के 52 साल बाद तक संघ  के मुख्यालय पर कभी तिरंगा नहीं फहराया गया। जिन युवकों ने फहराने की कोशिश की, उनपर मुकदमा दायर किया गया। 2. बीजेपी का नारा 1992 तक जय श्रीराम रहा है, भारत माता की जय नहीं। आडवाणी की रथ यात्रा के तमाम वीडियो निकालकर देख लीजिये। आज़ादी से पहले संघ के किन लोगो ने भारत माता की जय बोला है, यह आज भी शोध का विषय है। 3. बीजेपी ने हमेशा शिला यात्रा निकाली है, शिला पूजन की है। आडवाणी सरीखे नेताओं ने कभी तिरंगा यात्रा निकाली हो इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। फोटो शॉप तकनीक ज़रूर इस मामले में मदद कर सकती है। 4. बीजेपी प्रतीकवाद की राजनीति करती है। अब नया प्रतीक चाहिए। भगवा तिरंगे से रीप्लेस हो रहा है। कुछ जगहों पर भगवा और तिरंगा साथ-साथ चल रहे हैं, दोनो में से कोई ना कोई काम तो करेगा ही।

प्रयोजन केवल उग्र धार्मिक गोलबंदी है। इकॉनमी अच्छे दिनो से पकौड़े तक आ गई है। रोजगार सृजन पिछले दो दशक के सबसे निचले स्तर पर है। बताने के लिए एक भी कायदे का काम नहीं है। इसलिए ले देकर केवल ध्रुवीकरण का ही रास्ता बचा है। 6. इस बात पर नज़र रखिये कासगंज में हिंसा की भेंट चढ़ चुके युवक के परिजनों के साथ आगे कैसा सलूक होता है। क्या उसके परिवार वालों में से किसी को नौकरी मिलती है या मामले की निष्पक्ष जांच करके दोषियों को दंडित किया जाता है? 1989 के शिला पूजन के दौरान मारे गये कोठारी बंधु किन लोगो को याद हैं? बाबरी मस्जिद टूटने के कई बरस बाद तक वाजपेयी और आडवाणी जैसे बीजेपी बड़े नेता कारसेवको के लिए `उन्मादी भीड़’ शब्द का इस्तेाल करते रहे। शहीद और बलिदानी का दर्जा कोई नहीं देता है।
सांप्रादायिक राजनीति की खासियत यही है कि वह अकेले पड़ गये अपने आदमी को पहचानने से इनकार कर देती है। काम हो जाने के बाद लोग दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंके जाते हैं। आम कार्यकर्ताओं की बात छोड़िये बड़े लोगो को याद कर लीजिये।  बलराज मधोक ने जनसंघ बनाने वाले अग्रणी नेताओं में एक थे। बाद में कुछ मतभेद हुए। उन्होने अपने ही सहयोगियों पर गंभीर आरोप लगाये। वे इस तरह निकाल फेंके गये कि लोगो को याद भी नहीं रहा कि वे जीवित भी हैं या नहीं। कुछ साल पहले गुमनामी में उनकी मौत हो गई। लालकृष्ण आडवाणी उग्र हिंदुत्व का एजेंडा लेकर आये। दो सीटों वाली बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाया। आज उनकी हालत तरस खाने लायक है। प्रवीण तोगड़िया ने पूरे भारत में लाखों त्रिशूल बंटवाये। सांप्रादायिक ध्रुवीकरण के साथ कुछ सामाजिक काम भी किये। अब दावा कर रहे हैं कि आईबी की लोग उनकी हत्या करवाना चाहते हैं। यही हाल वेलेंटाइन डे पर लड़के-लड़कियों को पिटवाने वाले प्रमोद मुत्तालिक का भी है। वे भी अपने ही संगठन के लोगो से अपनी जान को खतरा बता रहे हैं।
 2014 तक बीजेपी के नेतृत्व को पढ़े लिखे मध्यमवर्गीय लोगो की ज़रूरत थी क्योंकि वही लोग नरेंद्र मोदी के पक्ष में माहौल बना रहे थे। यूपी चुनाव के नतीजो ने यह साफ कर दिया कि मध्यमवर्गीय कोर वोटर का सम्मान करना कतई ज़रूरी नहीं है। अब असली ताकत वह युवा शक्ति है, जिसके पास एक बाइक और स्मार्ट फोन है और बेरोजगार होने के बावजूद उसे अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं है। 2019 में मोदी जी की नाव यही युवा वोटर पार लगाएगा। परंपरागत समर्थकों को उसी भीड़ के पीछे चलना होगा कोई और रास्ता नहीं है। वे अगर अपनी सरकार कुछ उम्मीद रखेंगे या सवाल पूछेंगे तो गद्धार ठहराये जाएंगे। नियमित रूप से शाखा जानेवाले अपने कई दोस्तो को मैने सोशल मीडिया पर ट्रोल होते देखा है। वे पूरी तरह भाजपा समर्थक हैं, कसूर सिर्फ इतना है कि थोड़े पढ़े-लिखे हैं और कभी-कभी सरकार की नीतियों पर सवाल पूछ लेते हैं। तथ्यों का जवाब तथ्यों से देने में किसी दिलचस्पी नहीं है। सवाल पूछने वाला हर आदमी आपिया, खांग्रेसी और सिकुलर ठहराया जाएगा, भले ही वो आज भी बीजेपी में कांग्रेस से ज्यादा संभावनाएं देखता हो।
(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ की फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)