सर्वोच्च न्यायालय ने शनिवार को जिला अदालत के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद्द किया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को सिर्फ इसलिए बर्खास्त नहीं किया जा सकता कि उनसने उचित माध्यम को दरकिनार करते हुए सीधे उच्च अधिकारियों को ज्ञापन भेजे। मामले पर न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ सुनवाई कर रही थी।
सरकारी कर्मचारी छत्रपाल को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने सीधे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल और मुख्यमंत्री सहित उत्तर प्रदेश सरकार के अन्य अधिकारियों को प्रतिवेदन भेजे थे। पीठ ने कहा, चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी आर्थिक संकट के दौरान सीधे वरिष्ठ अधिकारियों को ज्ञापन दे सकता है। लेकिन, यह अपने आप में इतना बड़ा कदाचार नहीं है, जिसके लिए कर्मचारी को सेवा से बर्खास्तगी की सजा दी जाए।
अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता ने बरेली की जिला अदालत के अन्य कर्मचारियों का भी उदाहरण दिया है। जिन्होंने सीधे उच्च अधिकारियों को ज्ञापन भेजे, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आधेश को रद्द करते हुए छत्रपाल की सेवा की बहाली का आदेश दिया। उच्च न्यायालय ने 2019 में बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस याचिका में दम नहीं है।
छत्रपाल को बरेली की जिला अदालत में स्थायी आधार पर अर्दली के रूप में चतुर्थ श्रेणी के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में उनका तबादला जिला अदालत की शाखा नजरत में किया गया। लेकिन, उन्हें वेतन एक अर्दली का ही दिया जा रहा था। नजरत शाखा अदालतों की ओर से जारी किए समन, नोटिस, वारंट आदि जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं के वितरण और उन्हें पूरा करने के लिए जिम्मेदार है।