1961 के बाद राज्य में प्रवेश करने और बसने वालों की पहचान की जाएगी और उन्हें निर्वासित किया जाएगा। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस बयान पर विशेषज्ञों ने मंगलवार को प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इस कदम की व्यवहार्यता पर संदेह जताया है। विशेषज्ञों ने कहा कि अवैध आप्रवासियों की पहचान एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन उनका निर्वासन तब तक मुश्किल होगा जब तक कि संबंधित विदेशी देश उन्हें आपने वास्तविक नागरिकों के रूप में मान्यता नहीं देते। गौरतलब है
कि पूर्वोत्तर राज्य पिछले साल मई से जातीय संघर्ष से हिल गया था और राज्य सरकार ने पड़ोसी देश म्यांमार के अप्रवासियों के एक वर्ग पर समस्या पैदा करने का आरोप लगाया है। सोमवार को प्रोजेक्ट बुनियाद के लॉन्च पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि जो लोग 1961 के बाद राज्य में आए और बस गए, चाहे वे किसी भी जाति और समुदाय के हों, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें निर्वासित किया जाएगा।
मणिपुर सीएम के बयान पर विशेषज्ञों की राय
मुख्यमंत्री का यह बयान जून 2022 में मणिपुर कैबिनेट द्वारा ‘इनर लाइन परमिट’ के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्य के निवासियों की मूल स्थिति निर्धारित करने के लिए 1961 को आधार वर्ष के रूप में अपनाने के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद आया है। राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप फंजौबम ने कहा कि अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने के लिए, संबंधित विदेशी देश को उन्हें अपने वास्तविक नागरिक के रूप में स्वीकार करना होगा। यदि विदेशी देश अप्रवासियों को अपने नागरिक के रूप में मान्यता नहीं देता है, तो उन्हें कैसे निर्वासित किया जाएगा।
अकेले राज्य सरकार नहीं ले सकती निर्वासन का निर्णय- काशर
फोरम फॉर रिस्टोरेशन ऑफ पीस के संयोजक अशांग काशर ने कहा कि निर्वासन अकेले मणिपुर सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता है। अप्रवासियों की पहचान महत्वपूर्ण है। जिन लोगों की पहचान अवैध अप्रवासी के रूप में की जाएगी, उनके पास मूल निवासियों को मिलने वाले अधिकार नहीं होने चाहिए। उदाहरण के लिए, उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होना चाहिए।