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क्या दान में आए हजारों करोड़ रुपयों को सरकार ले लेगी? सोशल मीडिया में चल रहे संदेशों का सच

राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ही सोशल मीडिया में मंदिर को मिलने वाले चढ़ावे को लेकर एक नई बहस शुरू हो चुकी है। सोशल मीडिया में इस तरह के संदेश लगातार भेजे जा रहे हैं कि राम मंदिर में आए हजारों करोड़ रुपये के चढ़ावे को अंततः सरकार ले लेगी। इन पैसों से राम मंदिर या अयोध्या का नहीं, बल्कि किसी अन्य स्थल का विकास किया जाएगा। इन संदेशों में कहा जा रहा है कि सरकार बड़े हिंदू मंदिरों में आये हुए करोड़ों रुपये के चढ़ावे को अपने कब्जे में ले लेती है, जबकि मुसलमानों की मस्जिदों और ईसाइयों के गिरजाघरों में चढ़ाई गई धनराशि को वह छूती भी नहीं है।

सभी धर्म के पूजा स्थलों से एक समान व्यवहार की अपील
इन संदेशों में लोगों से राम मंदिर को नकद दान देने से भी मना किया जा रहा है। इसके स्थान पर लोगों से प्रसाद-माला या गरीबों को सीधे दान देने की अपील की जा रही है। लोगों को यह भी कहा जा रहा है कि वे सरकार से अपील करें कि वह हिंदू मंदिरों से दान की राशि लेना बंद करे और सभी धर्म के पूजा स्थलों से एक समान व्यवहार करे। कई बड़े हिंदू मंदिरों के नामों का उल्लेख करते हुए इन संदेशों में कहा जा रहा है कि सरकार इन मंदिरों को अपना खर्च चलाने के लिए कुल चढ़ावे का एक छोटा हिस्सा दे देती है, जबकि बाकी पैसा सरकार ले लेती है।

सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुकी है ये बात
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अमर उजाला को बताया कि उन्होंने 2020 में एक जनहित याचिका दाखिल कर सभी धर्मों के पूजा स्थलों के लिए एक समान कानून (सर्व धर्म स्थल समान कानून) की मांग की थी। इस समय देश के 18 राज्यों में 35 कानून चल रहे हैं जिसके सहारे हिंदुओं-जैन मंदिरों पर सरकार नियंत्रण करती है। इस समय देश के लगभग एक लाख मंदिरों पर सरकारों का नियंत्रण है, जबकि किसी मस्जिद-चर्च पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। तमिलनाडु में हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ दान बंदोबस्त कानून 1959 लागू है। इसके अंतर्गत राज्य के 45 हजार हिंदू मंदिरों (17 जैन मंदिरों सहित) को संचालित किया जा रहा है। इसी प्रकार के अलग-अलग कानून विभिन्न राज्यों में संचालित हैं।

एक ही राज्य में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग व्यवस्था
अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी मंदिर पर सरकार का नियंत्रण है, उसके श्राइन बोर्ड का सबसे बड़ा अधिकारी वहां का उपराज्यपाल होता है, जबकि उसी राज्य में श्रीनगर की हजरत बल दरगाह पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। राजस्थान के पुष्कर मंदिर पर राजस्थान सरकार का नियंत्रण है, जबकि उसी राज्य की अजमेर शरीफ दरगाह पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। दिल्ली का कालकाजी मंदिर सरकार के नियंत्रण में है, जबकि जामा मस्जिद पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। देश के अनेक राज्यों में इसी तरह का भेदभाव पूर्ण कानून जारी है। राजस्थान की ब्राह्मण सभा ने एक बड़ा सम्मेलन कर सरकार से इस तरह के भेदभावपूर्ण व्यवस्था को समाप्त करने की मांग की है।

दस सूत्रीय मांग
जनहित याचिका में केंद्र सरकार से कानून बनाकर सभी हिंदू-जैन मंदिरों पर से सरकार का नियंत्रण हटाने की मांग की गई है। याचिका में दस सूत्रीय मांग कर कहा गया है कि मंदिरों के पैसों से वेद विद्यालय, गोशाला, संस्कार शाला, वेदशाला और आयुर्वेद शाला खोली जानी चाहिए और इसका नियंत्रण पूरी तरह मंदिरों के पास होना चाहिए। इस मुद्दे पर अदालत ने सरकार से जवाब भी मांगा है, लेकिन अभी तक इस मामले पर सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है।

इस मुद्दे पर राजनीति भी होती रही
विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने इस मुद्दे पर जमकर राजनीति भी की है। विश्व हिंदू परिषद कई बार यह अभियान चलाती रही है कि हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए। भाजपा ने भी इस अभियान को पूर्ण समर्थन दिया है। पंजाब भाजपा के उपाध्यक्ष सुभाष शर्मा ने हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि काली माता मंदिर और संगरूर के प्रसिद्ध मंदिरों के साथ-साथ लगभग 200 हिंदू मंदिरों पर सरकार कब्जा करके बैठी है। उन्होंने सरकार से इन मंदिरों पर से अपना नियंत्रण वापस लेने की अपील की है।

भाजपा सरकारों ने भी किया वही काम
लेकिन एक तरफ जहां भाजपा दूसरे राज्यों में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान चलाती रही है, वहीं उत्तराखंड की उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने एक कानून बनाकर राज्य के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेने का प्रयास किया था। वहां के साधु-सन्यासियों के कड़े विरोध और चुनावी नुकसान को भांपते हुए पुष्कर सिंह धामी सरकार ने इस कानून को स्थगित कर दिया है। इसी तरह हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार पर भी आरोप है कि उसने चंडी देवी के मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का निर्णय किया था।

अदालत ने भी माना गलत
इस मामले पर चल रही तमाम बहस के बीच सर्वोच्च न्यायालय के अनेक विद्वानों ने माना है कि इस तरह का भेदभाव पूर्ण व्यवस्था नहीं होना चाहिए। या तो सरकार को किसी भी धर्म के मंदिरों पर कोई नियंत्रण नहीं करना चाहिए, या सबके लिए एक समान व्यवस्था लागू करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति एसए बोब्डे ने 2019 में जगन्नाथ मंदिर के एक मामले में कहा था, उन्हें यह समझ नहीं आता कि सरकार को मंदिरों का संचालन क्यों करना चाहिए। उन्होंने माना था कि यदि इन मंदिरों का पूर्ण नियंत्रण मंदिरों भक्तों-पुजारियों के पास ही रहने दिया जाए तो कई अव्यवस्थाओं से बचा जा सकता है। 2014 में तमिलनाडु के नटराज मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश दिया गया था।

राम मंदिर में क्या होगी व्यवस्था
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के संयुक्त महासचिव डॉ. सुरेंद्र जैन ने अमर उजाला से कहा कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर में आये किसी भी चढ़ावे या दान राशि पर केंद्र या राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा। इस पूरी धनराशि पर श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का अधिकार होगा। वह इन पैसों से मंदिर का प्रशासनिक खर्च चलाएगी और मंदिर में शेष निर्माण कार्य कराएगी। अभी मंदिर के कुछ हिस्सों के साथ छोटे-छोटे कई और मंदिर भी बनाए जाएंगे। यह धनराशि पूरी तरह इन्हीं कार्यों में खर्च होगी। डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि इस समय भी मंदिर का पूरा निर्माण कार्य मंदिर के लिए आये हुए चढ़ावे से हुआ है। आगे भी यही कार्य जारी रहेगा। केंद्र या राज्य सरकार का कार्य मंदिर और यहां आने-जाने वाले भक्तों की सुरक्षा का होता है, सरकार की भूमिका केवल वहीं तक सीमित रहेगी।