समुद्र में मछुआरों को मछली पकड़ने वाली नौकाओं से इमरजेंसी संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल दूसरी पीढ़ी के डिस्ट्रेस अलर्ट ट्रांसमीटर (डीएटी) को इसरो ने विकसित किया है। इसरो ने कहा कि नेविगेशन क्षमताओं को शामिल करते हुए डिस्ट्रेस अलर्ट ट्रांसमीटर 2010 से काम कर रहा है। वर्तमान में 20 हजार से अधिक इस्तेमाल किए जा रहे हैं। हालांकि दूसरी पीढ़ी के डीएटी में दो तरफा संचार की सुविधा होगी।
कैसे करता है काम
इसरो के बयान के मुताबिक, संचार उपग्रह के जरिए संदेश भेजे जाते है, जिन्हें एक केंद्रीय नियंत्रण स्टेशन पर प्राप्त किया जाता है। मछली पकड़ने वाली नाव की पहचान और चेतावनी संकेतों को डिकोड किया जाता है। इस जानकारी को भारतीय तट रक्षक के तहत समुद्रीय बचान समन्वय केंद्रों को भेज दी जाती है। जिसके बाद विपदा में फंसे मछुआरों को बचाने के लिए अभियान चलाया जाता है। संचार और नेविगेशन तकनीकी विकास का लाभ उठाते हुए इसरो ने उन्नत क्षमताओं और सुविधाओं के साथ डीएटी में सुधार किया है।
दो तरफा संचार की सुविधा से लैस- इसरो
इसरो ने कहा कि इसमें खास बात यह है कि इसमें मछुआरों को मैसेज मिलने की सुविधा है, जिससे समुद्री संकट के दौरान यह बेफिक्र हो जाते हैं कि बचाव दल उनके पास आ रहा है। गौरतलब है कि खराब मौसम, चक्रवात, सुनामी की स्थिति में समुद्र में मछुआरों को अलर्ट मैसेज भेजे जा सकते हैं। जिससे समुद्र में मौजूद मछुआरों को घर वापस जाने या सुरक्षित जगह चुनने में मदद मिलेगी। साथ ही मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों के बारे में जानकारी भी डीएटी का उपयोग करके मछुआरों को भेजी जाती है। इससे ईधन की बचन, मछुआरों को अच्छी मछली पकड़ने में मदद मिलती है। डीएटी को ब्लूटूथ इंटरफेस के जरिए मोबाइल फोन से जोड़ा जाता है। साथ ही मोबाइल में एप के जरिए संदेशों को अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं। 15 जनवरी को इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने आईएनएमसीसी, इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क, बेंगलुरु में आईसीजी महानिदेशक राकेश पाल की मौजूदगी में डीएटी-एसजी का उद्घाटन किया।