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दारुल उलूम में अनुपम पल की गवाह बनेगी उर्दू की रामायण, रामचरित मानस का भी अध्ययन करते हैं छात्र

अयोध्या में पांच सौ वर्ष बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। 21वीं सदी में 22 जनवरी इस अनुपम पल की गवाह बनेगी। जिसके लिए पूरे देश त्योहारी बना हुआ है। वहीं, एशिया के सबसे बड़े इस्लामिक मदरसे दारुल उलूम में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित हिंदू ग्रंथ रामायण को संग्रहीत कर रखा गया है। जो हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। खास बात है कि यह रामायण उर्दू भाषा में है। इस्लामी तालीम के प्रमुख केंद्र दारुल उलूम के पुस्तकालय में हिंदू ग्रंथ रामायण बेहद संभाल कर रखी गई है। दारुल उलूम के छात्र इसका अध्ययन भी करते हैं।

पुस्तकालय के इंचार्ज मौलाना शफीक ने बताया कि श्रीरामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वीं सदी में रचित प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसका उर्दू अनुवाद 1321 पेज में सन 1921 में महर्षि स्वामी शिव बरत लाल जी बर्मन (एमए) ने किया था। इसे जेएस संत सिंह एंड संस ने लुहारी दरवाजा लाहौर से प्रकाशित किया था, जबकि महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित आदि काव्य रामायण का 272 पेज में उर्दू अनुवाद सन 1949 में कीर्तन कलानिधि बानी भूषण नाटिया आचार्य महा कवि श्री शिव नारायण तसकीन ने किया था। मौलाना शफीक ने बताया रामायण वाल्मिकी के उर्दू अनुवाद का प्रकाशन गेलाराम एंड संस द्वारा दिल्ली से किया गया गया था। यह इसका द्वितीय संस्करण है।

धर्म ग्रंथों को केमिकल लगाकर किया गया है संग्रहीत
दारुल उलूम के पुस्तकालय के शोकेस में तुलसीदास रामायण और वाल्मिकी रामायण को बहुत ही संभाल कर रखा गया है। अधिक पुरानी होने के कारण दोनों रामायण के पन्ने बेहद कमजोर पड़ चुके हैं और इनका रंग तक बदल चुका है। खराब न हो इसलिए इन्हें केमिकल लगाकर संग्रहीत किया गया है।

ऐतिहासिक जखीरा, सुरक्षा भी ऐसी
दोनों रामायण की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की इन्हें शोकेस से बाहर निकालकर देखने के लिए संस्था के किसी बड़े जिम्मेदार की लिखित अनुमति लेना जरूरी है। उसके बिना इन धर्म ग्रन्थों को केवल दूर से ही निहारा जा सकता है।