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मुलायम और शिवपाल को भी अपने पाले में खड़ा कर अखिलेश ने सभी आरोपों को झटका

मुलायम पर भी जब-जब संकट आया वह आगरा ही गये

राजेश श्रीवास्तव

आगरा । समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ पूरी कार्यकारिणी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। दिलचस्प यह रहा कि अध्यक्ष चुने जाने से पहले ही लंबे समय से उनके निशाने पर चल रहे उनके चाचा और पिता ने बधाई और आशीर्वाद भी दिया। इसे अखिलेश की कूटनीतिक विजय भी कहा जा सकता है। उन्होंने चंद दिनों पहले पिता और पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर उन्हें आगरा आने का न्योता देकर एक तीर से दो शिकार कर लिया। उन्होंने यह संदेश भी दिया कि उनके अध्यक्ष बनने में उनके पिता को कोई विरोध नहीं है। क्योंकि लंबे समय से उन पर खुद मुलायम सिंह यह आरोप लगाते चले आ रहे हैं कि उन्होंने अपने पिता को धोखा दिया और तीन महीने बाद अध्यक्ष पद वापस नहीं किया। अब जब लगभग यह तय है कि आज समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उनके पिता मुलायम सिंह यादव खुद आगरा आकर उन्हें आशीर्वाद देंगे और चाचा शिवपाल बुधवार को ही बधाई दे चुके हैं। आगरा की धरती सपा के इस नये अध्यक्ष के लिए कितनी उर्वर होगी, यह तो समय बतायेगा। लेकिन समाजवादी पार्टी का इतिहास खंगालें तो साफ हो जाता है कि जब-जब पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव को राजनीतिक शिकस्त मिली। तब-तब उन्हें आगरा से ही आक्सीजन मिली। समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन 5 अक्टूबर को आगरा में होने वाला है। सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सम्मेलन में आने का अखिलेश का न्योता पिता मुलायम स्वीकार करते हैं कि नहीं? ताज नगरी में 2 दिन चलने वाले इस सम्मेलन में पार्टी 2०19 के चुनावों की रणनीति बनाने के साथ ही अखिलेश यादव को अगले पांच साल के लिए अध्यक्ष हालांकि बुधवार को ही पार्टी ने तय कर लिया है और गुरुवार को इस पर अधिकृत रूप से मुहर लग जायेगी। सत्ता से दूर हो चली समाजवादी पार्टी ने वापसी की उम्मीद में ताज नगरी आगरा का रुख किया है। समाजवादी पार्टी में फिलहाल हाशिए पर खड़े मुलायम सिह यादव को जब-जब राजनीतिक संकट ने घेरा, उन्होंने वापसी के लिए आगरा का ही रुख किया। ताज नगरी से सियासी हनक की वापसी का नुस्खा अब बेटे अखिलेश भी आजमा रहे हैं। 1993 में आगरा में पार्टी की बैठक के बाद यूपी में सरकार बनी। 2००3 में आगरा में ही अधिवेशन के बाद मुलायम ने सत्ता में वापसी की। 2००9 में एक बार फिर आगरा में बैठक ने लोकसभा चुनावों में अच्छा रिजल्ट दिया और 2०12 में आगरा में ही बैठक के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और अखिलेश मुख्यमंत्री बने। 2०19 के आम चुनाव से पहले अखिलेश को एक बार फिर ताज नगरी से ही उम्मीद है। अखिलेश को अगले 5 साल के लिए पार्टी का अध्यक्ष चुना जाएगा और रामगोपाल का भी कद सेक्रेटरी जनरल बनाकर बढ़ाया जा सकता है। मोदी और योगी सरकार पर हमला होगा लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की तारीफ की जाएगी। पिछले साल से ही कुनबे में मचे घमासान के बाद समाजवादी पार्टी एकजुट होने की कोशिश कर रही है। अखिलेश ने मुलायम से मुलाकात कर रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश की है। अगर मुलायम सम्मेलन में आये तो परिवार एकजुट दिख सकता है। ऐसे में शिवपाल के पास भी अब विरोध करने का कोई मौका नहीं बचा है। हो सकता है कि सपा कार्यकारिणी में शिवपाल को भी कोई अहम पद देकर संतुष्ट करने का प्रयास हो। सपा एमएलसी सुनील सिंह साजन ने कहा कि कल नेता जी आएंगे और मंच पर भी बैठेंगे। वह नवनियुक्त अध्यक्ष को बताएंगे कि लोहिया के विचारों पर चलते हुए किस तरह पार्टी को आगे बढ़ाया जाये। संविधान संशोधन कर अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ा इतिहास रचेंगे अखिलेश नअगले विस चुनाव तक शिवपाल को किया किनारे समाजवादी पार्टी आगरा में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में गुरुवार को पार्टी के संविधान में संशोधन करेगी। इसके पीछे उद्देश्य पार्टी में लीडरशिप को लेकर उठने वाले सवाल और अखिलेश यादव के खिलाफ किसी भी संभावित विद्रोह को खत्म करना है। इस अधिवेशन में पार्टी के संविधान को बदलने का प्रस्ताव पास किया जाएगा- जिससे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल से बढ़कर पांच साल हो जाएगा। संशोधन के पास हो जाने पर, यह सुनिश्चित होगा कि अगले लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के ही नेतृत्व में होंगे। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश यादव ही भविष्य में होने वाले सभी चुनावों के लिए टिकटों का बंटवारा करेंगे। इस कदम का उद्देश्य पार्टी कैडर को आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों और 2०19 के आम चुनाव से पहले खड़ा करना है। अखिलेश को ताकतवर बनाने का मकसद विद्रोही गुट को स्पष्ट और निर्णायल संदेश देना है, जिसका नेतृत्व उनके चाचा और मुलायम सिह के छोटे भाई शिवपाल यादव कर रहे हैं। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल चाचा-भतीजा के बीच तलवारें खिच गई थीं। बिगड़ते पारिवारिक संबंधों के बीच, अखिलेश यादव ने नए साल के मौके पर आपात राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर पिता मुलायम सिह यादव को हटाकर खुद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए थे। लंबे समय से चले आ रहे इस परिवारिक विवाद में मुलायम सिह अपने भाई शिवपाल का समर्थन करते रहे हैं। जबकि अखिलेश ने इस दौरान पार्टी में अपनी स्थिति लगातार मजबूत की है। इस बदले हालात में शिवपाल के लिए अब समाजवादी पार्टी के अंदर और बाहर कुछ अलग करने के लिए जगह नहीं बची है। ऐसे में वो पार्टी जिसपर एक ही परिवार का दबदबा है, उसके अध्यक्ष को चुनौती देकर अलग संगठन खड़ा करने की कोई भी कोशिश जोखिम से भरा होगा।