बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद – माओवादी संबंध मामले में आरोपी गौतम नवलखा को जमानत देने के फैसले में अहम टिप्पणी की है। इसमें कहा गया है कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे प्रथम दृष्टया यह साबित किया जा सके कि उन्होंने किसी आतंकवादी कृत्य की साजिश रची या उसे अंजाम दिया।
अदालत ने उपलब्ध कराया पूरा फैसला
न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति एसजी दिगे की खंडपीठ ने मंगलवार को नवलखा को जमानत दी। पूरा फैसला बुधवार को उपलब्ध कराया गया। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से हमें ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता (नवलखा) को किसी भी गोपनीय या परोक्ष आतंकवादी कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है।’
2018 में गिरफ्तार किए गए थे गौतम नवलखा
एल्गार-परिषद मामले में नवलखा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था। नवंबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें नजरबंद करने की अनुमति दी थी। अभी वह महाराष्ट्र के नवी मुंबई में रह रहे हैं। उन्हें जमानत देते हुए पीठ ने आदेश को लागू करने पर तीन सप्ताह के लिए रोक लगा दी, ताकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अपील में उच्चतम न्यायालय का रुख कर सके। एनआई ने छह सप्ताह तक आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।
पेश की गई सामग्री में उचित आधार नहीं
न्यायाधीश ने कहा, ‘हमारी राय है कि एनआईए द्वारा हमारे समक्ष पेश सामग्री के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता (नवलखा) के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।’ उन्होंने कहा, रिकॉर्ड प्रथम दृष्टया इशारा करता है कि अपीलकर्ता का इरादा कथित अपराध करना था और इससे अधिक नहीं। इस इरादे को आगे तैयारी या आतंकवादी कृत्य करने के प्रयास में नहीं बदला गया है।
यूएपीए की इन धाराओं में दस वर्ष की अधिकतम सजा
गवाहों के बयानों से संकेत मिलता है कि नवलखा भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे। जो केवल गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधि में भाग लेना) और 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता) के प्रावधानों को आकर्षित करेगा। इन दोनों धाराओं में अधिकतम दस वर्ष की सजा का प्रावधान है।
जिन दस्तावेजों को बरामद नहीं किया, उनका भी जिक्र
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जिन दस्तावेजों को नवलखा के पास से बरामद नहीं किया गया है। उनका भी जिक्र किया गया है। उनमें कमजोर गुणवत्ता है। इसने कहा, ‘इन पत्रों/दस्तावेजों की सामग्री सुनी-सुनाई बातों के साक्ष्य के रूप में हैं, क्योंकि वे सह-आरोपी से बरामद किए गए हैं। इन दस्तावेजों और संचार के माध्यम से एनआईए एक आतंकवादी संगठन की गतिविधियों के साथ नवलखा के संबंध स्थापित करने की कोशिश कर रही थी।’