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2015 में देश में पांच साल से कम के 11 लाख बच्चों की मौत हुई, जिन्हें बचाया जा सकता था

लखनऊ । गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद  पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है. लेकिन आंकड़े बताते है कि देश में 2015 में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 10.8 लाख बच्चों की मौत हुई। यह आंकड़ा प्रतिदिन 2,959 मृत्यु या प्रत्येक मिनट में दो मृत्यु का है। इनमें से बहुत से बच्चों की मृत्यु ऐसे कारणों से हुई थी जिनसे बचा जा सकता था और जिनका इलाज हो सकता था।

ताजा उपलब्ध डेटा, सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम स्टैटिस्टिकल रिपोर्ट-2015 के अनुसार, देश में पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर (यू5एमआर)- एक विशिष्ट वर्ष में पैदा हुए एक बच्चे की पांच वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले मृत्यु की संभावना- वर्ष 2015 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 43 मृत्यु की थी।

बाल मृत्यु दर को स्वास्थ्य और देश के कल्याण के लिए एक बड़ा संकेत माना जाता है, क्योंकि बाल मृत्यु दर पर प्रभाव डालने वाले कारण पूरी जनसंख्या के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालते हैं। वर्ष 2015-16 के दौरान, जब अर्थव्यवस्था 7.6% की वृद्धि दर के साथ पांच वर्षों में सर्वेश्रेष्ठ दर के रिकॉर्ड के साथ वृद्धि के चार्ट पर ऊपर जा रही थी, वर्ष 2015 में 43 के यू5एमआर ने भारत को ब्रिक्स देशों में सबसे नीचे और दक्षिण एशिया में तीसरे सबसे खराब स्थान पर पहुंचा दिया था। हालांकि, इसमें वर्ष 2008 में 69 की दर से 26 अंकों का सुधार था।

असम और मध्य प्रदेश जैसे कुछ भारतीय राज्यों में अफ्रीका के घाना से भी खराब यू5एमआर दर्ज की गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2012 के डेटा के हवाले से बताया गया है कि पांच वर्ष से कम आयु में ज्यादातर मृत्यु के कारण नवजात शिशु संबंधी रोग (53 फीसदी), निमोनिया (15 फीसदी), डायरिया संबंधी बीमारियां (12 फीसदी), खसरा (3 फीसदी) और चोटें या दुर्घटनाएं (3 फीसदी) थे।

‘सेव द चिल्ड्रन’ के अनुसार, “दो-तिहाई से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु पहले महीने में ही हो गई। इनमें से  90 फीसदी मृत्यु निमोनिया और डायरिया जैसे आसानी से बचे जा सकने वाले कारणों से हुई।

(ये रिपोर्ट मूल रूप से इंडिया स्पेंड में प्रकशित हुई है)