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2014 से अब तक कांग्रेस के हाथ से 6 राज्य फिसल चुके हैं

rahuनई दिल्ली। बिहार में BJP की हुई दुर्गति और महागठबंधन की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी जब मीडिया से बात करने पहुंचे, उन्होंने अपनी खुशी जाहिर करने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया। नीतीश-लालू गठबंधन की सरकार पिछले साल नवंबर में सत्ता में आई। राहुल ने उस वक्त इस प्रचंड जीत को ‘भाईचारा’ कहा और सिर्फ यही बोले कि प्रधानमंत्री मोदी को देश की अपील ध्यान से सुननी चाहिए।

गुरुवार को ऐसी खबर आई कि चिकनगुनिया होने की वजह से कांग्रेस उपाध्यक्ष मीडिया से बात करने में समर्थ नहीं हैं। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस विधायकों की संख्या 163 से घटकर 115 रह गई। यहां तक कि पुडुचेरी में मिली जीत भी कांग्रेस के लिए कोई बड़ी राहत लेकर नहीं आया। मुकाबला वहां भी एकतरफा नहीं था और विपक्षी ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली। इस वक्त देश में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मणिपुर, मेघालय और मिजोरम में कांग्रेस पार्टी की सरकार बची है। 2014 से अब तक कांग्रेस के हाथ से 6 राज्य फिसल चुके हैं।
राज्यों में मिल रही लगातार हार ने कांग्रेस में राहुल गांधी की भूमिका पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। पार्टी के अंदर और उनकी राजनीतिक शैली से प्रभावित रहने वाले प्रशंसकों की ओर से कई बार राहुल के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने की बात उठती रहती है। बिहार के नतीजों को छोड़ दिया जाए तो राहुल के नेतृत्व पर बड़े सवाल खड़े होते रहे हैं। लोकसभा चुनावों में महज 44 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस ने 2 साल के दौरान कभी भी नेतृत्व में बदलाव के संकेत नहीं दिए।

राहुल गांधी के पहले ‘भारत माता’ के विवाद में और फिर पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों के साथ जाने के फैसले का कोई अच्छा नतीजा नहीं निकला। लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन न तो बंगाल में BJP को बेदम कर सकी और न ही ममता बनर्जी को रोकने में सफल रही। बिहार में महागठबंधन की जोरदार जीत के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष के कुछ खास विश्वस्तों द्वारा कमान संभालने की बात का प्रचार किया गया था। हालांकि, उसके बाद से राहुल पर दबाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

कांग्रेस की पेरशानी बढ़ाने में बड़ी भूमिका बागियों की भी है। असम में BJP की जीत में निर्णायक भूमिका निभाने वाले हेमंत बिस्वा शर्मा भी कांग्रेस से नाराज होकर ही बागी बने। शर्मा ने राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि जब वह चुनावी चर्चा के लिए उनके पास पहुंचे तो उन्होंने रुचि नहीं ली। वह ज्यादातर वक्त अपने कुत्ते के साथ खेलते रहे। वहीं उत्तराखंड में भी कांग्रेस के नौ बागी विधायकों ने राजनीति में बड़ा बवाल खड़ा किया था। पंजाब में कांग्रेस के सीनियर लीडर कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पार्टी के खिलाफ कई बार अपना विरोध दर्ज कर चुके हैं। वहीं तमिलनाडु में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जी के मोपन्नार के पोते जी के वासन ने अपनी पार्टी ही बना ली।

राहुल की राजनीतिक शैली भी विपक्ष के नेता की भूमिका के उपयुक्त नहीं है। गठबंधन के सहयोगी जैसे लालू यादव और शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ अधिक सहज रहते हैं। ‘जमीनी हकीकत’ जानने के लिए लेफ्ट के साथ गठबंधन का उनका फैसला भी कुछ ठीक नहीं रहा। कांग्रेस के इस फैसले पर TMC प्रमुख औऱ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव परिणाम के बाद जमकर खरी-खोटी सुनाई।

मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी GST बिल को पास नहीं होने देने के लिए कांग्रेस ने मजबूत प्रतिरोध दर्ज किया था, लेकिन विरोध की वह दीवार भी अब ढहती लग रही है। अगुस्टा वेस्टलैंड डील में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठने और मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को दोषमुक्त किए जाने के बाद से कांग्रेस के लिए मुश्किल हालात बन गए हैं।

सच्चाई यही है कि राहुल गांधी के फैसलों से कांग्रेस को कई बार झटका लगा है। उनके ज्यादातर फैसलों को राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व निर्णय कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में नीतीश कुमार के रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लाने के फैसले पर कांग्रेस के अंदर ही कई विरोधी आवाज आई थी। हालांकि, पार्टी हाई कमान ने स्पष्ट कर दिया कि किशोर पार्टी संगठन से जुड़े फैसले नहीं लेंगे। वहीं कुलदीप विश्नोई की पार्टी को कांग्रेस में शामिल करने के फैसले ने भूपिंदर सिंह हुड्डा के लिए असहज स्थिति बना दी।

इसी तरह लोकसभा चुनाव में असम की 14 सीटों में से सात सीटें BJP के जीतने के बाद भी राहुल ने तरुण गोगोई पर अपना भरोसा कायम रखा। हालांकि, पार्टी के अंदर से मुख्यमंत्री पद के लिए हेमंत बिस्वा शर्मा का नाम उठा था, लेकिन राहुल गोगोई के नाम पर अड़े रहे। नतीजा सामने है, शर्मा ने BJP की सरकार बनाने में वहां बड़ी भूमिका निभाई है। इसी तरह TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी के अनुरोध को ठुकरा कर उन्होंने लेफ्ट के साथ गठबंधन किया। 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष का पद संभालते वक्त राहुल ने कहा था कि ‘सत्ता जहर है’। अगर वह वाकई इस पर यकीन करते हैं तो उनके लिए जहर पीने का वक्त शायद आ गया है।