पूर्वोत्तर के राज्यों में रेलवे ट्रैक पर अकसर हाथी चपेट में आ जाते हैं. कई घायल हो जाते हैं और कई की मौत हो जाती है. हाथियों की मौत रोकना रेलवे के लिए बड़ी चुनौती थी. क्योंकि पिछले 10 वर्षों में ट्रेन की चपेट में आने से करीब 200 हाथियों की मौत हो चुकी है. हाल ही में भारतीय रेलवे ने इस समस्या का समाधान ढूंढ़ लिया है और पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस तकनीक का इस्तेमाल भी किया जा चुका है.
हाथियों के ट्रेन की चपेट में आने की घटनाएं पूरे देश में होती रहती हैं लेकिन सबसे ज्यादा घटनाएं पश्मिच बंगाल समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में ज्यादा घटनाएं होती हैं. कई बार हाथियों के झुंड ही ट्रैक पर आ जाते हैं. लोको पायलट के रोकते रोकते हाथी चपेट में आ जाते हैं. हालांकि भारतीय रेलवे इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए संभावित क्षेत्रों में लगातार पेट्रोलिंग कराई जाती है. इसके बावजूद घटनाएं हो जाती हैं.
पिछले 10 वर्षों में 200 हाथियों की ट्रेन के चपेट में आने से मौत हो चुकी है. इनमें असम में 30, पश्चिमी बंगाल में 55, ओडिशा में 14, उत्तराखंड में 9, त्रिपुरा में एक, उत्तर प्रदेश में एक हाथी मौत हुई है.
रेलवे ने इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए नई तकनीक विकसित की है, जिसका नाम ‘गजराज’ है. इसका पायलट प्रोजेक्ट पूर्वोत्तर में नार्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे करीब 70 किमी. रेलवे ट्रैक न्यू अलीपुर द्वार और लामडिंग सेक्शन के बीच तकनीक का इस्तेमाल किया है.
ये है ‘गजराज’ तकनीक
नार्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे के जीएम अंशुल गुप्ता ने बताया कि रेलवे ट्रैक के किराने आप्टिकल फाइबर बिछाकर सेंसर लगाए गए हैं, जो कंट्रेाल रूम, स्टेशन और रेडियो कम्यूनिकेशन के माध्यम से इंजन से कनेक्ट है. इस तरह जब हाथी ट्रैक पर आएगा उसके दबाव से कंपन पैदा होगा, जिसकी सूचना कंट्रोल रूम, स्टेशन मास्टर और लोको पायलट के पास पहुंचेगी. इतना ही नहीं, उसी समय अलार्म भी बजेगा, जिससे तीनों जगह एक साथ सूचना पहुंच सकेगी. इससे पता चलेगा कि कंपन कहां हुआ है, लोको पायलट उसी के अनुसार ट्रेन की स्पीड कम करेगा. इस तकनीक से करीब 14 एलीफैंट कोरिडोर कवर हो चुके हैं.