सर्वोच्च न्यायालय (एससी) ने मंगलवार को मणिपुर के शवगृहों में पड़े शवों को दफनाने या दाह संस्कार सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए। राज्य में मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से कई लोगों की मौत हो चुकी है।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों की महिला समिति द्वारा एक रिपोर्ट दाखिल की गई है, जिसमें राज्य के मुर्दाघरों में पड़े शवों की स्थिति का संकेत दिया गया है। इस समिति का नेतृत्व न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल द्वारा किया गया।
इसने इस बात पर भी गौर किया कि 169 शवों में से 81 पर उनके परिजनों ने दावा किया है, जबकि 88 शवों पर दावा नहीं किया गया है। पीठ ने पाया कि राज्य सरकार ने नौ स्थलों की पहचान की है जहां शवों को दफनाया जा सकता है।
पीठ ने कहा, ‘उन शवों को शवगृहों में अनिश्चित काल तक रखना उचित नहीं होगा, जिनकी पहचान नहीं की गई है या जिन पर दावा नहीं किया गया है।’ शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें हिंसा के मामलों की अदालत की निगरानी में जांच के अलावा राहत और पुनर्वास के उपाय की मांग शामिल है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने निर्देश दिया कि शवों के परिवार को सदस्यों के द्वारा नौ स्थलों में से किसी पर भी बिना बाधा के अंतिम संस्कार किया जा सकता है। इसने कहा कि राज्य के अधिकारी उन शवों के परिजनों को स्थलों के बारे में सूचित करेंगे, जिन पर पहले ही दावा किया जा चुका है। पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया चार दिसंबर या उससे पहले पूरी होनी चाहिए।
आदेश में कहा गया है, ‘जिन शवों की पहचान कर ली गई है, लेकिन जिन पर दावा नहीं किया गया है, उनके संबंध में राज्य प्रशासन सोमवार को या उससे पहले परिजनों को सूचित करेगा कि उन्हें एक सप्ताह के भीतर आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों के साथ अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाएगी।’ पीठ ने कहा कि कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक (एसपी) कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी उचित कदम उठाने की स्वतंत्र होंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतिम संस्कार व्यवस्थित तरीके से हो।