“पुलिस मुझे चोर-डकैत जैसे किसी अपराधी की तरह घर से ले गई थी. 18 अप्रैल 2018 की वो शाम कहर बनकर आई. उधारबोंद थाने से आकर पुलिस मुझे साथ ले गई. पहले थाने में बैठाई. फिर सिलचर ले जाकर बॉर्डर एसपी के सामने खड़ा कर दिया.
दो दिन हिरासत में भेजने की बात कहकर दो साल 10 दिन तक जेल में रखा गया.” अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए 8 साल तक संघर्ष करने वाली 51 वर्षीय दुलुबी बीबी जब ये बता रही थीं तो उनके चेहरे से बेबसी और गुस्सा दोनों साफ़ झलक रहा था. जिस फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफ़टी कोर्ट) ने दुलुबी बीबी को 20 मार्च 2017 को ‘विदेशी नागरिक’ बताया था, गुवाहाटी हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब उसी ने उन्हें भारतीय नागरिक घोषित किया है.
अनथक भाग-दौड़ और लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद बीते महीने 7 अक्टूबर को दुलुबी बीबी ने अपनी भारतीय नागरिकता फिर से हासिल कर ली है. लेकिन सिलचर जेल में बिताए वो दो साल उनके मन-मस्तिष्क में ऐसे सदमे की तरह बैठ गए हैं जिससे अब तक वो बाहर नहीं निकल पाई हैं.
दुलुबी सवाल पूछती हैं- “मुझे जेल में क्यों रखा गया”
सिलचर से क़रीब 18 किलोमीटर दूर मधुरा नदी के पास दयापुर (पार्ट-1) गांव की एक संकरी गली दुलुबी बीबी के घर तक जाती है.
मैं जब उनके घर पहुंचा तो वह आंगन में बैठी खाना पका रही थीं. मुलाक़ात के महज कुछ मिनट के बाद ही उन्होंने मुझसे ये सवाल पूछे, “आखिर मुझे दो सालों तक हिरासत में क्यों रखा गया? जेल में मुझे हाई ब्लड प्रेशर और छाती के दर्द की बीमारी हो गई. अब भी इलाज करवा रही हूं. इस पीड़ा और कठिनाई के लिए कौन ज़िम्मेदार है?” शायद अगले कुछ सालों तक दुलुबी बीबी को ये सवाल यूं ही परेशान करते रहेंगे.
असम में नागरिकता का मुद्दा जितना पुराना है, उतना ही यह जटिल भी है. लिहाजा यहां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी में संशोधन करने और नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) पारित होने के बावजूद एक बड़े तबके के लोगों का जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से गुज़र रहा है. जिन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने की चुनौती मिलती है वे बंगाली मूल के हिंदू और मुसलमान दोनों ही तबके के लोग है. दुलुबी बीबी उन्हीं पीड़ितों में से एक है जिन्हें अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया था.
जब दुबुली बीबी को विदेशी बताया गया…
1998 में पहली बार अवैध प्रवासी निर्धारण न्यायाधिकरण (आईएमडीटी) क़ानून के तहत दुलुबी बीबी की नागरिकता को लेकर एक मामला (सं.9712/1998) दर्ज किया गया था. दरअसल 1997 में उधारबोंद विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी ने दुलुबी बीबी के नाम के आगे संदिग्ध मतदाता (डी-वोटर) का टैग लगा दिया था. जांच के समय जो मतदाता सूची का मसौदा था उसमें दुलुबी बीबी का नाम था लेकिन उससे पहले की मतदाता सूची में उनका नाम शामिल नहीं होने के कारण उन्हें संदिग्ध नागरिक बनाया गया.
इस बारे में दुलुबी बीबी को पहला नोटिस 2015 में मिला था. इस नोटिस के बारे में दुलुबी बीबी कहती हैं, “पुलिस जब पहली बार नोटिस लेकर आई थी तो मुझे बिलकुल डर नहीं लगा. लेकिन इस बात का आश्चर्य ज़रूर हुआ कि बिना किसी जांच पड़ताल के एक भारतीय नागरिक को क्यों नोटिस भेजा गया. मेरा जन्म इसी गांव में हुआ है. यहां मेरे दादा-परदादाओं की ज़मीन है. फिर मैं विदेशी कैसे हो सकती हूं?”
वे कहती हैं, “मैं अपने सभी दस्तावेज़ों के साथ पहले बॉर्डर पुलिस के पास गई. फिर दो साल सिलचर फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफ़टी कोर्ट) कोर्ट के चक्कर काटे. जब एफ़टी कोर्ट ने मुझे 2017 में विदेशी घोषित कर दिया तो हम हाई कोर्ट गए. इस मामले को चलाने के लिए बहुत पैसा खर्च हुआ. मेरे पति ट्रक चलाते हैं, उन्होंने अपनी पूरी कमाई इस केस में लगा दी. लोगों से जो उधार लिया था उस पैसे पर अब भी ब्याज चुका रहे हैं. अगर हाई कोर्ट नहीं जाते तो ये लोग मुझे भारत की ज़मीन से पुश-बैक कर बाहर निकाल देते.” छह साल बाद हाई कोर्ट के आदेश पर जब एफ़टी कोर्ट ने इस मामले की फ़िर से जांच की तो यह स्थापित हो गया है कि 1997 की मतदाता सूची में दुलुबी बीबी वही महिला थीं जो 1993 की मतदाता सूची में दुलोबजान बेगम थी. एफ़टी कोर्ट ने अपने हाल के आदेश में लिखा कि दुलुबी बीबी और दुलोबजान बेगम एक ही व्यक्ति है.
एफ़टी कोर्ट ने क्यों बनाया विदेशी?
एफ़टी कोर्ट के आदेश की कॉपी
सिलचर स्थित फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने जब 20 मार्च 2017 में दुलुबी बीबी को ‘विदेशी नागरिक’ घोषित किया था तो इसका कारण मतदाता सूची में उनके नाम में आई विसंगतियों को बताया गया था. इस आदेश के अनुसार दुलुबी बीबी ने अपनी नागरिकता से जुड़े जितने भी सबूत और दस्तावेज़ एफ़टी कोर्ट में जमा करवाए थे उनमें वो अपने पिता और दादा के संबंध को स्थापित नहीं कर पाई. जबकि एफ़टी कोर्ट के आदेश में इस बात का भी उल्लेख है कि अपने लिखित बयान में दुलुबी बीबी ने स्थायी निवासी होने से जुड़े सभी काग़ज़ात कोर्ट में दाखिल किए थे.
लेकिन एफ़टी मेंबर बीके तालुकदार ने उनके सभी दस्तावेज़ों को ख़ारिज करते हुए अपने आदेश में दुलुबी बीबी को 25 मार्च 1971 के बाद आई एक विदेशी नागरिक बताया. एफ़टी कोर्ट ने उन्हें वापस उस निर्दिष्ट क्षेत्र में पुश-बैक करने का आदेश दिया. हालांकि कोविड-19 के कारण सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 27 अप्रैल, 2020 में दुलुबी बीबी को जमानत मिल गई.