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1905 के बंगाल विभाजन की ब्रिटिशॊं की चाल को 60000 से भी ज्यादा लोगों ने कैसे विफल बनाया

भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 1905 में एक घटिया चाल चली गयी। वास्तव में अंग्रेज़ 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन की पृष्ठभूमी तयार करते हुए हिन्दू -मुस्लिम एकता को तोड़ने के षड्यंत्र के तहत यह चाल चली गयी थी। लेकिन उनकी इस चाल को 60000 से भी ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर ने विफल बनाया। बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को की गयी थी लेकिन विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ। इस विभाजन के विरॊध में ऐसा प्रतिरॊध हुआ कि अंग्रेजी सरकार की जड़े हिल गयी।

अखंड बंगाल प्रान्त का क्षेत्रफल 489,500 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 8 करोड़ से ज्यादा थी। पूर्वी बंगाल भौगोलिक रूप से एवं कम संचार साधनों के कारण पश्चिमी बंगाल से लगभग अलग-थलग था।  चिट्टागांग तथा ढाका और मैमनसिंह के जिलों को बंगाल से अलग कर असम प्रान्त में मिलाने के प्रस्ताव पर अंग्रेज़ी सरकार ने मुहर लगा दिया और छोटा नागपुर को केन्द्रीय प्रान्त से मिलाया गया। हालांकि ऊपर से देखने पर यह विभाजन प्राशासनिक सुविधा के लिए बनाया हो ऐसा दिखाई देता था लेकिन बंटवारे के पीछे असली वजह थी ब्रिटेन की डिवाइड एट इम्पेरा (विभाजित करके शासन करो) नीति थी।

अंग्रेज़ों ने यह कभी सॊचा भी ना था कि उनके बंगाल विभाजन के इस मनशा पर जनता पानी फेर देगी। इस विभाजन के खिलाफ़ बहुत बड़ा आदोंलन छिड़ गया। जगह जगह सरकार के खिलाफ़ विरॊध प्रदर्शन हुआ। बहुसंख्यक हिन्दूऒं ने इस विभाजन के विरॊध प्रदर्शन में 60000 से भी ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर लिए और सरकार के नीती का विरॊध किया। राजा, महाराज, किसान, जमीन्दार तथा अन्य लोगों ने विभाजन के खिलाफ़ हस्ताक्षर और अंगूठा लगाकर अपना प्रतिरॊध जताया।

ढ़ाका के खाजा अतीकुल्ला विभाजन के उस दौर का वर्णन करते हुए लिखते हैं ” पूरा प्रांत शॊक में था। दुकाने बंद थी और वह उपवास और प्रार्थना का दिन था। इस दुर्भाग्य पूर्ण दिन के खिलाफ़ हजारॊं हिन्दू कलकत्ता में गंगा स्नान कर रहे थे।” बड़ी संख्या में इस विभाजन का विरॊध किया गया। बंगाल जैसे बड़े प्रांत में हर घर में जाकर विभाजन के विरुद्द हस्ताक्षर लिया गया। यहां तक की बीहड़ और घने जंगलों के अंदर भी जाकर लोगों का हस्ताक्षर लिया गया।

60000 से भी ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर लेना यह कॊई आम बात नहीं थी। इससे अंग्रेज़ों के संसद तक में हलचल मच गयी। अंग्रेज़ी सांसद हर्बर्ट राबर्ट्स को भारत के तत्कालीन सचिव को तलब करना पड़ा कि अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ उन्हें वे दस्तावेज़ मिले हैं जिसमें 60000 लोगों के हस्ताक्षर किये गये थे। विभाजन के खिलाफ़ आंदॊलन इतना बढ़गया की अंग्रेज़ी सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। क्यॊं कि राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन प्रबल हुआ जिसमें अहिंसक और हिंसक विरोध प्रदर्शन, बहिष्कार और यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल के नए प्रांत के राज्यपाल की हत्या का प्रयास भी शामिल था।

लगभग  6 साल तक यह विभाजन बड़ी मुश्किल से चला। आखिरकार थक हार कर अंग्रेज़ॊं ने 1911 में विभाजन को रद्द किया। 60000 आम लोगों ने मिलकर अंग्रेज़ों को अपना निर्णय वापस लेने को मजबूर कर तो दिया। लेकिन यह विभाजन एक सॊची समझी चाल के तहत किया गया था इसी कारण से हिन्दू और मुस्लिम एकता में बाधा आने लगी और धर्म के आधार पर दॊनों समुदायॊं में प्रत्येक राज्य को लेकर मांग उठती रही। इस विभाजन के ठीक एक साल बाद यानि 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी। इसके बाद से  नेहरू-जिन्ना-गांधीजी की तिकड़म के साथ मिलकर अंग्रेज़ों ने हिन्दू और मुसलिमों के लिए प्रत्येक देश बनाने का प्रस्ताव रखा और 1947 में भारत को धर्म के आधार पर दो हिस्सॊं में बांट भी दिया।

1905 का बंगाल विभाजन 1947 के विभाजन के पहले की कवायत जैसे प्रतीत होता है। अंग्रेज़ॊं और नेहरू-जिन्ना के घटिया चाल को भारत के मासूम लॊग भांप नहीं पाये और उसका परिणाम क्या हुआ आज हम देख रहें हैं। अंग्रेज़ॊं की उसी चाल को कांग्रेस पिछले सत्तर साल से हम पर आज़मा रही है और आज भी हम उनकी चाल में फंसकर आपस में ही लड़ रहे हैं।