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सृजन घोटाले की आंच राबड़ी देवी के कार्यकाल तक पहुंची, नीतीश कुमार हुए हमलावर

पटना। बिहार के सृजन घोटाले में हर दिन कुछ कुछ नई जानकारियां सामने आ रही हैं. हर व्यक्ति यही मालूम करने की कोशिश कर रहा है कि आख़िर इस घोटाले की शुरुआत कहां से हुई.  2003 में तत्कालीन ज़िला अधिकारी ने आदेश जारी किया था कि सृजन एनजीओ के समिति के बैंक में सभी तरह के पैसे जमा किए जा सकते हैं. इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि कोर्ट मॉनिटरिंग करे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हैं.

मामले की जांच से जुड़े कागजात बता हैं कि 18-12-03 को भागलपुर के तत्कालीन डीएम ने अपने आदेश से कहा था कि सृजन समिति में सरकारी और गैर सरकारी राशि जमा की जा सकती है. यह साबित करता है कि तब भी इस घोटाले को बेरोकटोक जारी रखा गया था.

उधर, एनडीटीवी खबर के पास 2002 का एक पत्र है जिससे पता चलता है भागलपुर में सहयोग समितियों के तत्‍कालीन सहायक निबंधक सुभाष चंद्र शर्मा ने सृजन के कामकाज की जांच की तब उन्हें ही विभाग के वरीय अधिकारियों ने कैसे निशाना बनाया. शर्मा ने अपने वरीय अधिकारियों को लिखे पत्र में साफ़ लिखा है कि सृजन में उस समय सब कुछ नियमों को ताक पर रख कर काम किया जा रहा था. उन्होंने अपने पत्र में एक और विशेष जांच करने की मांग की थी. ये बात अलग है कि उस समय राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं और शर्मा का ही दो इन्क्रीमेंट रोक दिया गया था. इस कार्रवाई से साफ़ है कि मनोरमा देवी का सत्ता के गलियारे में उस समय भी प्रभाव था और 2002 हो या 2013, जांच रुकवाने में उन्हें हमेशा कामयाबी मिलती थी.

लेकिन इस मामले के प्रकाश में आने के बाद ये साफ़ है कि राबड़ी देवी, नीतीश कुमार या सुशील मोदी सब इस घोटाले को उजागर नहीं कर पाए. कम से कम इस मामले में शिकायत पर जो कार्रवाई होनी चाहिए थी उसे दबाने का काम उनके सरकार के समय जरूर हुआ.  हालांकि इस बार मामले के प्रकाश में आने के बाद नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने खुद इसका खुलासा किया, साथ ही जिला पुलिस पर जांच न छोड़कर विशेष जांच दल भेजा.

लेकिन शयद सीबीआई भी इस बात का जवाब जरूर ढूंढेगी कि आखिर 750 करोड़ तक की राशि के गबन होने तक आखिर बैंकर्स, जिला प्रशासन के अधिकारियों, कुछ जिला अधिकारियों और सत्ता के करीबी नेतओं की मिलीभगत से ये घोटाला बदस्तूर क्यों जारी रहा. हालांकि सीबीआई के पास इस मामले के जाने के बाद विपक्षी दलों के हाथ से अब एक बड़ा मुद्दा छिन गया है. लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसी वित्तीय अनियमितता को आखिर क्यों और कैसे सालों तक चलने दिया गया.