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सिर्फ राफेल के बूते चीन की चुनौती से निपटना मुश्किल: विशेषज्ञ

rafale-picनई दिल्ली। भारत भले ही राफेल फाइटर विमान सौदे पर अरबों रुपए खर्च करने जा रहा हो पर जानकारों का मानना है कि चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत को इससे काफी कुछ ज्यादा करना होगा। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातक भारत ने कई बड़े समझौते किए हैं पर अपने खराब सेफ्टी रिकॉर्ड के चलते ‘उड़ता कफन’ कहे जाने वाले रूस के मिग-21 विमानों को बदलने के मामले में भारत की गति काफी धीमी रही है।

फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदने के सौदे पीछे भारत की मंशा इसी पहलू को मजबूत करने की है। सुरक्षा विशेषज्ञ गुलशन लूथरा ने कहा, ‘यह वायु सेना को मजबूती देगा। हमारी वायु सेना के पास 1970 और 1980 के पुराने पीढ़ी के विमान हैं और पिछले 25-30 सालों में यह पहली दफा हो रहा है कि हम टेक्नॉलजी में क्वॉन्टम जंप ले रहे हैं। राफेल में सर्वश्रेष्ठ टेक्नॉलजी मौजूद है जिसकी हमें जरूरत है।’

वहीं वायुसेना का कहना है कि पाकिस्तान और चीन के साथ लगने वाली देश के उत्तरी और पश्चिमी सीमा की रक्षा के लिए उसे कम से कम 42 स्क्वॉड्रन चाहिए। फिलहाल ये संख्या 32 है, हर स्क्वॉड्रन में 18 विमान हैं। वायु सेना के प्रतिनिधियों ने पिछले साल भारत की संसद को चेताया था कि 2022 तक स्क्वॉड्रन की संख्या घटकर 25 हो सकती है जो भारत को पाकिस्तान के बराबर ला छोड़ेगी। भारत के लिए असली चिंता का विषय पाकिस्तान का सहयोगी चीन है जिसकी सैन्य क्षमता भारत से कहीं ज्यादा है। लूथरा के मुताबिक भारत पाकिस्तान से तो निपट सकता है पर चीन से नहीं और अगर चीन पाकिस्तान की मदद के लिए आ जाए तो हम फंस सकते हैं।
शुक्रवार को दिल्ली में राफेल सौदे पर हस्ताक्षर होने हैं जिसके बाद वायु सेना में दो स्क्वॉड्रन बढ़ जाएंगे। हालांकि भारत को यह विमान मिलने में तीन साल लग जाएंगे। फिलहाल सीरिया और इराक में बम गिराने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे राफेल 3,800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकते हैं। जानकार बताते हैं कि राफेल की मदद से वायु सेना भारत में रहकर पाकिस्तान और चीन में मौजूद टारगेट पर वार कर सकती है।

आलोचक दलील देते हैं कि राफेल सौदा देश को काफी महंगा पड़ रहा है। हालांकि भारत काफी मोल भाव के बाद डील की रकम को कम करवाकर 7.9 बिलियन यूरो तक लाने में कामयाब रहा। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी पिछले साल कहा था कि 126 राफेल का सौदा बहुत मंहगा है। पर्रिकर ने कहा था, ‘हम बाकी विमान नहीं खरीदने जा रहे हैं। मेरी भी इच्छा होती है कि बीएमडब्ल्यू और मर्सेडीज खरीदूं पर मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं इसे अफोर्ड नहीं कर सकता।’

पीएम मोदी ने कहा है कि वह भारत के सबसे ज्यादा हथियार आयात करने वाले देश की पहचान को खत्म करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि इस दशक के अंत तक 70 फीसदी हार्डवेयर का निर्माण भारत खुद करे। उनकी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर लगी 49% की सीमा को भी खत्म कर दिया है।

कई जानकारों का मानना है कि भारत अब देश में बने तेजस पर और पैसा लगाना चाहता है। तेजस विमान सबसे छोटा और हल्का फाइटर विमान है जिसका निर्माण भारत में हुआ है। हालांकि इसमें लगे कुछ उपकरण आयात किए गए हैं।

रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने कहा, ‘आप छोटे, हल्के फाइटर प्लेन को असामान्य रूप से महंगे और भारी राफेल से नहीं बदल सकते।’