नई दिल्ली। घाटे से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लेकर केंद्र सरकार जल्द ही बड़ा फैसला ले सकती है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसके संकेत दिए हैं कि करीब दो दर्जन से ज्यादा सरकारी बैंकों में से कुछ का आपस में विलय किया जा सकता है ताकि उनकी स्थिति को सुधारा जा सके।
वहीं विलय किए जाने के इस विचार का बैंकर्स ने भी स्वागत किया है और सलाह दी है कि सरकार को इस मसले पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए, जो विलय की रणनीति तैयार कर सके।
उल्लेखनीय है कि देश की बैंकिंग इंडस्ट्री की कुल संपत्ति का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पास है। लेकिन उनके पास करीब 85 फीसदी एनपीए (बैड लोन) भी है जो कि 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है और जिसके चलते उन्हें जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक अभी भी करीब 40 फीसदी लोगों की बैंकों तक पहुंच लगभग नगण्य है। ऐसे में इंडस्ट्री ऐनालिस्ट्स सरकारी बैंकों की संख्या को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। वित्त मंत्री ने भी इस दिशा में संकेत करते हुए कहा, ‘हमें ज्यादा नहीं बल्कि मजबूत बैंकों की जरूरत है। एकीकरण के लिए क्या बेहतर होगा और इसे कहां से शुरू किया जाएगा और कौन से बैंक इसमें शामिल होंगे इस पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का जल्द ही गठन किया जाएगा।’
जेटली ने कहा कि ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि विलय प्रक्रिया में कितने बैंकों को शामिल किया जाएगा या यह प्रक्रिया कब शुरू होगी और कब तक पूरी हो जाएगी, या फिर इसका अनुमान लगाना कि विलय के बाद कुल कितने सरकारी बैंक बचेंगे। हालांकि इससे पहले जनवरी में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने भी बैंकों के विलय के अनुमान को जल्दबाजी बताया था।