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‘सम्मान’ के बहाने मुलायम का महिमा मंडन

add mलखनऊ। सोमवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी में डॉ. भीमराव अम्बेडकर सभागार, डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में एक वीआईपी कार्यक्रम आयोजित हुआ ‘यश भारती सम्मान 2015-16’। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद थीं अरुण कुमार कोरी, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश।
कार्यक्रम का विज्ञापन सभी अखबारों में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, उत्तर प्रदेश की तरफ से छपवाया गया है। खास बात यह है कि विज्ञापन में प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव की तस्वीर के ऊपर और बड़ी तस्वीर मुलायम सिंह यादव की लगाई गई है।
आपको याद दिला दें कि 13 मई 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था कि सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश की तस्वीर का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। हाल ही में 18 मार्च 2016 को उस आदेश में आंशिक संशोधन किया गया और राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल की तस्वीर लगाने की भी अनुमति दे दी। लेकिन, मुलायम सिंह यादव (तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री) इस वक्त न तो प्रदेश के मुखिया हैं और न ही राज्यपाल, तो सवाल उठता है कि उनकी तस्वीर क्यों? क्या यह खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं है??? क्या ये कानून से भी बड़े हैं???
यह आयोजन पूरी तरह सरकारी कार्यक्रम था मगर फिर भी इसमें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया। कार्यक्रम स्थल पर स्टेज के पीछे लगे बैनर में भी न केवल मुलायम की तस्वीर काफी बड़ी थी बल्कि उसे फोकस लाइट द्वारा हाईलाइट भी किया गया। जबकि मुलायम किसी भी तरह सरकार में शामिल नहीं है, हां यह जरूर है कि प्रदेश में उनके पार्टी की सरकार है। इसके अलावा उन्होंने कार्यक्रम के दौरान अतिथियों को संबोधित भी किया। जिसमें उन्होंने सरकार के कामों और आयोजन की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
पिछले दिनों एक ‘सर्वे’ आया था जिसके बाद से सभी राजनैतिक पार्टियों ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तैयारी तेज कर दी है। सर्वे में सबसे ज्यादा नुकसान सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को ही बताया गया था। राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक सपा भी अब ‘सेफ मोड’ में मैदान में उतरना चाहती है। लोगों में मौजूदा अखिलेश सरकार से नाराजगी है, साफ जाहिर है ऐसे में पार्टी को अगले चुनावों के लिए कोई और चेहरा ढूंढ़ना था। ऐसे में ‘नेता जी’ से बेहतर विकल्प और कौन हो सकता था। आज के इस कदम से साफ जाहिर है कि समाजवादी पार्टी इस बार अखिलेश सरकार के उत्कृष्ट कामों और नेता जी के वादों पर चुनाव लड़ने वाली है।
इन लोगों को मिला सम्मान
साहित्य- अशोक चक्रधर, नाहीद आबदी, सुनील जोगी, गिरिजा शंकर, मोहम्मद इमरान खान, अनवार अहमद, गोपाल चतुर्वेदी
फिल्म निर्देशन- सुधीर मिश्र, विशाल भारद्वाज
खेल- सर्वेश यादव (निशानेबाजी), वजीर अहमद खां (शतरंज), सीमा पुनिया (एथलेटिक्स), जगवीर सिंह (हाकी), मनु कुमारी पाल, श्याम गुप्ता, सुनील कुमार राणा, अनुज चौधरी, सुधा सिंह, लालजी यादव (कुश्ती), रुद्र प्रताप सिंह (क्रिकेट), मेजर एके सिंह (नौकायान), नरेंद्र सिंह राणा (पॉवर लिफ्टिंग), स्थवी अस्थाना (घुड़सवारी), विजय सिंह चौहान (खेल)
मेडिकल- डॉ. नरेश त्रेहन, डॉ. डी प्रभाकर, सुभाष गुप्ता, डॉ रविकांत
अभिनय- राजू श्रीवास्तव (हास्य कलाकार), दिनेश लाल निरहुआ (अभिनय)
गायन- उस्ताद गुलाम मुस्तफा, अंकित तिवारी, कमला श्रीवास्तव (लोकगीत), इकबाल अहमद सिद्दीकी (गजल गायन), उस्ताद गुलशन भारती (गायन), सुरभि रंजन (गायन)
शिक्षा- प्रोफेसर इमरान, नवाज देवबंदी (शिक्षा)
इसके अलावा अनुराग कश्यप (संगीत निर्देशन), मधुकर त्रिवेदी (पत्रकारिता), हेमंत शर्मा (पत्रकारिता), चक्रेश कुमार जैन (हस्तशिल्प), अर्पणा कुमार, अरुणि‍मा सिन्हा (पर्वतारोह), अलीम उल्लाह सिद्दीकी (चित्रकारी) और कुमकुम आदर्श (कथक) को भी यश भारती अवार्ड दिया गया।
क्या है यश भारती सम्मान
यश भारती सम्‍मान दिए जाने की शुरूआत वर्ष 1994 में उत्‍तर प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने की थी। इस सम्मान का मकसद था प्रदेश से जुड़ी कला, साहित्य, खेल, संगीत आदि विभिन्‍न क्षेत्र में ऐसी हस्तियों को सम्‍मानित करना, जिन्‍होंने देश और विदेश में प्रदेश का नाम ऊंचा किया हो। पहले यश भारती सेसम्मानित होने वाली हस्तियों को 5 लाख रूपये की धनराशि दी जाती थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 11 लाख रूपये कर दिया गया था।
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को प्रदेश की 46 विभूतियों को यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया। सम्मानित लोगों को 11 लाख रुपए और प्रमाण पत्र भी दिया गया। संस्कृति विभाग की ओर से मिलने वाले इस पुरस्कार को पाने वाले सभी लोगों को इस बार से 50 हजार रुपए महीना आजीवन पेंशन भी मिलेगी।
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सम्मानित किए गए सभी लोगों ने निश्चित रूप से उत्कृष्ट काम किए होंगे इसमें कोई शक नहीं है लेकिन, आजीवन पेंशन देना, वह भी 50 हजार रुपए कहां तक उचित है? जिस प्रदेश के किसान सूखे से मर रहे हों, गन्ना किसान अपने बकायों और समर्थन मूल्यों की खातिर धरने दे रहा हो वहां सिर्फ ‘सम्मान’ के नाम पर करोड़ों की आहुति कहां तक उचित है?