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संसद भवन और इस शिव मंदिर के आकार का क्या रहस्य है?क्यूँ ये एक दुसरे से इतने मिलते जुलते है

दिल्ली से करीब 350 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के चम्बल का एक छोटा सा शहर है मुरेना जहां दशकों तक डाकुओं और बागियों की हुकूमत चली, यहां कई ऐसे इलाके हैं जहां आम इंसान तो क्या, पुलिस के कदम भी नहीं पड़े, लेकिन जब यहाँ बागियों का राज खत्म हुआ तो चंबल में कुछ ऐसे रहस्य सामने आए जिन पर यक़ीन करना बहुत मुश्किल था। यहां महादेव शिव का एक ऐसा संसार छिपा था, जिसका ज़िक्र शिव पुराण में भी हुआ है। दावा होता है कि वहां देश की पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियों की भविष्यवाणी पहले ही हो चुकी थी। सबसे ज्यादा हैरानी तो उस शिव धाम को देखकर होती है , जिसकी इमारत हूबहू देश की संसद से मेल खाती है वैसा ही गोलाकार ढांचा,खम्बों की कुछ वैसी ही सरंचना,बनाने वाले भी अलग,बनाने का वक़्त भी अलग फिर भी एक जैसा|

मंदिर न केवल बहार से हमारे लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन से मिलता जुलता है बल्कि अन्दर भी खम्बों का वैसा ही ढांचा है जैसे हमारे संसद भवन का|एक सांसदों की कर्म भूमि तो दूसरी शिव के ताप की भूमि|ये मंदिर 100 खम्बो पर टिका है जबकि देश का संसद भवन ग्रेनाइट के इसी तरह के 144 खम्बों के सहारे खड़ा हुआ है|

ये कोई इतेफाक है या भविष्वाणी जो सदियों पहले हो चुकी थी|क्या वजह है इसके पीछे की मंदिर हुबुहू संसद भवन के ढाँचे से मेल खाता है?

देश की संसद का दो ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने निर्माण किया था|1920 में इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था जो 1927 में पूरा किया गया था|इस पर 83 लाख का खर्च आया था पर ये माना जाता है की एडविन लुटियंस या हर्बर्ट बेकर में से कभी कोई भी इस इलाके की और नही आये और न ही उन्होंने कभी इस मंदिर को देखा है|

वहीं ये मंदिर किसने बनाया इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नही है पर कुछ इतिहासकार मानते है की इसे सजाने संवाराने का काम उस वक़्त के महाराज देवपाल ने किया था|इस मंदिर में 64 कमरे है|हर कमरे में एक शिवलिंग स्थापित है और हर शिवलिंग में कुछ अद्भुत शक्तियां भी छिपी है| मंदिर के मुख्य परिसर में भी एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है| इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है|

इकंतेश्वर महादेव के नाम से भी प्रतिष्ठित यह मंदिर कभी तांत्रिक अनुष्ठान के विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता था|इसका पौराणिक नाम चौंसठ योगिनी मंदिर है|मंदिर के बहार बनी कलाकृतियों का सबंध शिव की योगनियों से माना जाता है यानी शिव की 64 शक्तियों से|

लोग मानते है की ये मंदिर आज भी शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका है| यहाँ रात में रुकने की किसी को इजाज़त नही है|न कोई इंसान को न पक्षी को| माना जाता है की नौंवी शताब्ती में ये मंदिर तंत्र साधना का बहुत बड़ा केंद्र था जहां शिव की योगनियों को जागृत करने की कला सिखाई जाती थी यानी भूतकाल,भविष्य और वर्तमान को काबू करने की साधना|

आज तक कोई इस रहस्य का पता नही लगा पाया की इन दोनों के आकार में इतनी समानता क्यूँ है|ये महज इतेफाक है  ऐसा तो नही लगता बल्कि ऐसा प्रतीत होता है की  ये उस दिव्य शक्ति का कोई प्रतीक है ऐसी कोई भविष्वाणी है जो सदियों पहले हो चुकी थी जिसने हमारे सांसदों की कर्म भूमि को शिव के ताप की भूमि जैसा आकार दिया तांकि हमारी देश संसद के मंदिर में भी ऐसे तप हो जो देश का कल्याण करे|