नई दिल्ली। मोदी सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राष्ट्रगान के सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। हालांकि सरकार तब उलझन में पड़ गई, जब कोर्ट ने पलटकर पूछा कि संसद ने फिर राष्ट्रगान के अपमान को अपराध घोषित करने के लिए अब तक कुछ भी क्यों नहीं किया है?
शुरू में अडिशनल सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रगान और अन्य राष्ट्रीय प्रतीक ‘राष्ट्रीय गौरव’ हैं और इनका सम्मान करने की बात से ‘समझौता नहीं किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों का हर सभ्य और सुसंस्कृत देश में सम्मान किया जाता है।’
हालांकि याचिका दाखिल करने वाले श्याम नारायण चौकसे ने कहा कि अगर सरकार ऐसे नियम बनाकर सुनिश्चित करे कि इन प्रतीकों का अपमान नहीं होगा, तो वह अपनी याचिका वापस ले लेंगे। उन्होंने सीनियर ऐडवोकेट राकेश द्विवेदी के जरिए दावा किया कि राष्ट्रध्वज का अपमान करना तो अपराध है, लेकिन राष्ट्रगान के अपमान को अपराध घोषित करने वाला कोई कानून या नियम नहीं है।
इस पर जस्टिस ए एम खनविलकर ने पूछा, ‘संसद ने इसके बारे में अब तक कुछ क्यों नहीं किया है?’ हालांकि मेहता ने इन मुद्दों पर विचार करने के लिए और समय की मांग की। मेहता बीजेपी शासित राजस्थान और महाराष्ट्र की ओर से भी दलीलें पेश कर रहे थे, जिन्होंने याचिका का समर्थन किया था।
कोर्ट ने बीजेपी नेता अश्विन उपाध्याय की एक अन्य याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया। याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत वंदे मातरम को स्कूलों और कॉलेजों में गाना अनिवार्य किया जाए। इससे पहले बेंच ने फिल्म शुरू होने से पहले थिअटरों में राष्ट्रगान बजाना और उसके सम्मान में दर्शकों का खड़ा होना अनिवार्य किया था। देश के अटॉर्नी जनरल के समर्थन वाले इस अंतरिम आदेश ने अनिवार्यता की बात को लेकर और इस नियम से विशेष रूप से योग्य लोगों यानी डिफरेंटली एबल्ड पर्संस को भी छूट न दिए जाने के कारण काफी हलचल पैदा की थी।
बाद में हालांकि कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डिफरेंटली एबल्ड लोगों को इस नियम में छूट दी जएगी, लेकिन सरकार ने इस संबंध में अब तक कोई अधिसूचना जारी नहीं की है। कोर्ट के आदेश को सुनवाई के दौरान केरल सिने असोसिएशन की ओर से चुनौती भी दी गई। सीनियर ऐडवोकेट सी यू सिंह ने कोर्ट से कहा कि इस मुद्दे पर केवल कार्यपालिका को विचार करना चाहिए और यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। उन्होंने पूछा कि क्या कोर्ट के आदेशों पर सवाल उठाने वालों को क्या ‘राष्ट्रविरोधी’ मान लिया जाएगा? उन्होंने सवाल किया कि क्या ऐसी जनहित याचिका आर्टिकल 32 के तहत कोर्ट स्वीकार कर सकता है? उन्होंने कहा, ‘सरकार है, संसद है। उन्हें इससे निपटने दें। कोर्ट को यह क्यों बताना चाहिए कि राष्ट्रगान को कहां बजाना चाहिए?’
कोर्ट ने कहा कि वह सभी पक्षों की दलीलें 23 अगस्त 2017 को सुनेगा।