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योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाने की असली वजह ये है?

नई दिल्ली/लखनऊ। मुख्यमंत्री की रेस में जितने भी नाम थे, उनको पीछे छोड़कर जब योगी आदित्यनाथ के नाम पर आज लखनऊ में मुहर लगी तो हर कोई वजहें तलाशने लगा. आखिर दिल्ली में मोदी तो लखनऊ में योगी का फॉर्मूला कैसे निकला. कहा जा रहा है कि 2017 में योगी को यूपी को गद्दी देने के पीछे असली वजह 2019 है.

यूपी में योगी के आने की असली वजह
14 साल के वनवास के बाद जब दोबारा बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता में ऐतिहासिक बहुमत के साथ लौटी तो नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर वो दांव चला है, जिसकी धमक 2019 के लोकसभा चुनाव में गूंजनी तय है. 300 से ज्यादा विधायकों की ताकत वाले बीजेपी गठबंधन की सरकार योगी आदित्यनाथ चलाएंगे. वो योगी आदित्यनाथ जिनकी हिंदुत्ववादी छवि ही अब तक रोड़ा बनती रही है. उन्हीं योगी को सीएम पद की कुर्सी मिली है तो इसकी बड़ी वजह योगी की कट्टर हिंदुत्ववादी छवि ही मानी जा रही है.

90 के दशक में बीजेपी को जब स्पष्ट बहुमत मिला था तो कल्याण सिंह जैसे कट्टर हिंदुत्ववादी नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया था. अब 2017 में एक बार फिर से बीजेपी 325 सीटें लेकर सरकार बनाने निकलीं तो मोदी-अमित शाह ने हिंदुत्वादी राजनीति के पुरोधा योगी आदित्यनाथ पर भरोसा किया है.

संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि लोगों ने योगी का नाम सुना तो सब हर्ष से स्वीकार किया. कहा जा रहा है कि 2017 में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाने के पीछे सोच हिंदुत्व की चाल और विकास के चेहरे को आगे करने की है. एक ऐसा सियासी घोल जो 2019 में भी बीजेपी को दिल्ली की सत्ता यूपी से दिला सकता है.

योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर
सिर्फ 26 साल में सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ पांच बार से लोकसभा चुनाव जीत रहे हैं. लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले योगी आदित्यनाथ सीएम पद की रेस में दूसरों से आगे निकले तो इसकी भी एक बड़ी वजह है. उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों से एक बात गौर करने वाली रही है, वो ये कि जातिगत समीकरणों के मिथक इस बार टूटे हैं. इसीलिए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुनने के पीछे एक वजह ये भी है. ताकि योगी के नाम पर जाति की राजनीति का जाल तोड़कर उसे हिंदू राजनीति के नाम पर बड़ा कैनवास दिया जाए. योगी आदित्यनाथ जिस गोरक्षापीठ से जुड़े हुए हैं. उसका मंत्र ही है जाति-पाँति पूछे नहिं कोई-हरि को भजै सो हरि का होई.

माना जा रहा है कि योगी को सीएम बनाने का सीधा संदेश ये है कि उत्तर प्रदेश में दलित और यादव वोटबैंक पर आधारित राजनीति को हिंदू वोटबैंक के नाम पर तोड़ा जाए. और इसी आधार पर 2019 का चुनाव जीत लिया जाए. इस बात में दम है, ये विरोधियों के बयान से साबित भी होती है. याद करिए उत्तर प्रदेश के चुनाव में जब बिजली, श्मशान, कब्रिस्तान, एंटी रोमियो स्क्व़ॉयड जैसे बयान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह वोट मांग रहे थे, तब योगी आदित्यनाथ ही इनके बाद इकलौते नेता थे, जो हर सभा में अखिलेश यादव के विकास कार्यों को हिंदू-मुस्लिम के बीच में बंटा हुआ दिखाकर राजनीति कर रहे थे.

यूपी में ऐसे फिट किए बीजेपी ने जातीय समीकरण
लेकिन बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को आगे करके जहां हिंदुत्व का संदेश और विकास का रास्ता अपनाया है. वहीं दो डिप्टी सीएम चुनते हुए, जातियों की राजनीति बैलेंस भी करनी चाही है. जिसके बाद कुल मिलाकर अब उत्तर प्रदेश से दिल्ली की राजनीति कुछ ऐसे साधी जाएगी.

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- विकास का चेहरा
  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ- हिंदुत्व का चेहरा
  • उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य- पिछड़े वर्ग का चेहरा
  • उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा- ब्राह्मण चेहरा
  • बीजेपी ने मंत्रियों के पदों को लेकर जो जातीय समीकरण बिछाए हैं, माना जा रहा है कि 2017 का यही फॉर्मूला 2019 में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का रास्ता खोल सकता है.