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यूं भारत के लिए ‘ट्रंप कार्ड’ साबित होंगे ट्रंप, चीन को लगेगा झटका

नई दिल्ली। चुनाव प्रचार के दौरान डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था, ‘यदि मैं राष्ट्रपति चुना जाता हूं तो भारतीय और हिंदू समुदाय के लोग वाइट हाउस में सच्चे मित्र होंगे। मैं इसकी गारंटी देता हूं।’ शुक्रवार को डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली, लेकिन अब यह देखना होगा कि वह भारत के साथ संबंधों को कैसे आगे बढ़ते हैं। जॉर्ज बुश के कार्यकाल के वक्त से ही भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में मधुरता आई है। बुश मानते थे कि भारत के उभार दुनिया के लिए बेहतर होगा, इसके अलावा एशिया में चीन के साथ शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए भी यह जरूरी है।

यही रणनीतिक वजह थी कि बुश प्रशासन ने भारत के असैन्य परमाणु डील को आगे बढ़ाया। भारत में अमेरिकी राजदूत बनने की दौड़ में शामिल बताए जा रहे ऐश्ले जे. टेलिस ने ट्रंप को सलाह दी है कि वह इंडिया के साथ डीलिंग करते हुए व्यापक तस्वीर को ध्यान में रखें। भारत के प्रति बुश की नीति को याद करते हुए ऐश्ले कहते हैं, ‘उनकी नीति दो स्तर पर थी। पहली, अमेरिका एशिया की सुरक्षा का सबसे बड़ा गारंटर बना रहे। दूसरा, भारत की ताकत को द्विपक्षीय संबंधों में रिटर्न की बहुत ज्यादा उम्मीद किए बिना बढ़ाना ताकि क्षेत्र के भू-राजनीतिक समीकरणों को साधा जा सके।’

उनके बाद आए बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के शुरुआती दो साल चीन के साथ संबंधों को सुधारने के प्रयास में गुजार दिए। इसके बाद उन्होंने भारत की ओर रुख किया, लेकिन राजनीति रूप से कमजोर मनमोहन सिंह के साथ वह बड़ी नीतियों पर काम नहीं कर सके। हालांकि पिछले कुछ सालों में ओबामा प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन सुस्ती दूर नहीं की जा सकी। हालांकि बराबरी के स्तर पर डील करने के लिए मशहूर नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के साथ संबंधों में ऊर्जा भरने का काम किया।

भारत ने परमाणु उत्तरदायित्व के मुद्दे पर अमेरिका के साथ विवादों को निपटाने का काम किया। बीते दो सालों में मोदी और ओबामा की 9 बार मुलाकात हुई थी, इनमें द्विपक्षीय संबंधों को लेकर बात बढ़ती दिखी, लेकिन इसमें क्लाइमेट डील जैसे मुद्दे भी थे। डॉनल्ड ट्रंप को पहले ही डील करने वाले शख्स के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, ऐसे में मोदी और उनकी पहली मुलाकात पर नजर रखनी होगी।

भारत को अभी से शुरू कर देनी चाहिए तैयारी
हालांकि अब तक ट्रंप के बयानों से साफ है कि वह चीन और जिहादी आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाने वाले हैं। ट्रंप प्रशासन को सलाह देते हुए ऐश्ले कहते हैंकि उसे भारत के साथ डील करते हुए व्यापक रणनीतिक हितों को ध्यान में रखना चाहिए। हालांकि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मधुर बनाने की कोशिशों में कुछ मुद्दों पर पेच भी फंस सकता है। H-1B वीजा, व्यापार और निवेश को लेकर भारत को सोचना होगा। यदि अमेरिका फर्स्ट को लेकर ट्रंप किसी संकुचित नीति पर बढ़ते हैं तो भारत की आईटी इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान झेलना होगा।

रूस-अमेरिका संबंध सुधरने से सहज होगा भारत
भारत को ट्रंप प्रशासन से संबंधों को मजबूत करने के लिए कम H-1B वीजा, अमेरिकी कॉर्पोरेट टैक्स में कमी और टैरिफ के आयात के लिहाज से तैयारी करनी चाहिए। एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को अमेरिका के साथ इन्वेस्टमेंट ट्रीटी करनी चाहिए। इसके अलावा यह भी साफ नहीं है कि ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान-पाक में क्या रणनीति अख्तियार करता है। यह मुद्दा अमेरिका और भारत के संबंधों पर गहरा असर डाल सकता है। हालांकि रूस और अमेरिका के संबंध सामान्य होने से नई दिल्ली की स्थिति सहज होगी, लेकिन यह आसान नहीं होगा।