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मौजूदा सुप्रीम कोर्ट जजों का बौद्धिक स्तर बहुत कम: जस्टिस काटजू

justice-katjuनई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की बौद्धिक क्षमताओं की तीखी आलोचना की है। एक फेसबुक पोस्ट में काटजू ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की बौद्धिक क्षमता पर सवाल उठाते हुए लिखा कि मौजूदा दौर में सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर जजों का बौद्धिक स्तर काफी कम है। काटजू ने यह आरोप भी लगाया है कि उच्चतम न्यायालय के ज्यादातर वर्तमान जज अपनी योग्यता के कारण नहीं, बल्कि वरिष्ठता के नियम के कारण इतने ऊंचे पद पर पहुंचे हैं।

काटजू ने लिखा है, ‘CJI बनने की लाइन में खड़े जस्टिस दीपक मिश्रा बहुत कम उम्र में ही ओडिशा हाई कोर्ट के जज बन गए थे। ऐसा उनके रिश्तेदार और पूर्व CJI जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के प्रभाव के कारण हुआ। रंगनाथ मिश्रा भारत के सबसे भ्रष्ट जजों में से एक थे। जस्टिस रमण भी CJI बनने की पंक्ति में हैं। राजनैतिक संपर्कों के कारण वह भी काफी कम उम्र में ही आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के जज बन गए। बाद में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए। ऐसा उनकी योग्यता के कारण नहीं, बल्कि वरिष्ठता के कारण हुआ।’

 
जस्टिस काटजू ने इस पोस्ट में मौजूदा CJI जस्टिस ठाकुर की भी आलोचना की है…

काटजू ने अपनी पोस्ट की शुरुआत करते हुए लिखा है कि अब समय आ गया है कि भारतीयों को सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर जजों के मानसिक स्तर और बैकग्राउंड के बारे में बताया जाए। उन्होंने लिखा है, ‘जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस नरिमन जैसे कुछ जज हैं जो कि अपने बौद्धिक स्तर और चरित्र दोनों ही मामलों में बहुत ऊपर हैं, लेकिन इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर जजों का मानसिक स्तर बहुत कम है। मैं ऐसा इसलिए कह सकता हूं कि मैं खुद करीब साढ़े 5 साल तक सुप्रीम कोर्ट का जज था और इस दौरान मैं लगातार अपने सहकर्मियों के साथ बातचीत किया करता था।’

काटजू ने लिखा है कि उच्चतम न्यायालय के जज ज्यादातर क्रिकेट और मौसम के बारे में बात किया करते थे। उनका आरोप है कि इन जजों की बातचीत में कभी बौद्धिक मसलों का जिक्र नहीं आता था। उन्होंने लिखा है, ‘मुझे लगता है कि ज्यादातर सुप्रीम कोर्ट जजों को न्यायशास्त्र से जुड़े बड़े-बड़े नामों की जानकारी भी नहीं होगी। उन्हें यह भी नहीं पता होगा कि दुनिया भर में मशहूर न्यायशास्त्रियों का योगदान क्या है।’

काटजू ने मौजूदा CJI जस्टिस ठाकुर की भी आलोचना की है। उनका आरोप है कि BCCI मामले में जस्टिस ठाकुर ने न्यायिक अनुशासन का पालन नहीं किया और लोकप्रियता की रौ में बह गए। काटजू का आरोप है कि इस केस में जस्टिस ठाकुर ने जोखिमों की अनदेखी करते हुए संविधान और कानून को भी नजरंदाज किया। वरिष्ठता में CJI ठाकुर के बाद आने वाले जस्टिस अनिल दवे की भी काटजू ने आलोचना की है। उन्होंने लिखा कि सार्वजनिक तौर पर भगवद्गीता को भारत के सभी स्कूलों में अनिवार्य किए जाने की बात कहकर जस्टिस दवे ने संविधान की धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने की अपनी शपथ को तोड़ा है।

काटजू ने अपनी पोस्ट में वरिष्ठता के आधार पर CJI बनने की कतार में खड़े जस्टिस गोगोई की भी आलोचना की है। काटजू ने लिखा है, ‘सौम्या हत्याकांड में फैसला सुनाते हुए जस्टिस गोगोई ने दिखा दिया कि उन्हें कानून की बुनियादी बातों की जानकारी नहीं है। उन्होंने नहीं पता कि अफवाहों को सबूत नहीं माना जाता है।’ काटजू लिखते हैं, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर मौजूदा जजों के बारे में लिख सकता हूं और बता सकता हूं कि उनकी बौद्धिक क्षमता कितनी कम है, लेकिन यह जरूरी नहीं है।’