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मुलायम सिंह ने खुद लिख दी हैं 2017 सपा की बर्बादी की “पटकथा”

mulayam-sonbhadraनई दिल्‍ली। अगले साल की शुरुआत में होने जा रहे यूपी विधानसभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी की ओर से  चुनाव लड़ाएंगे भतीजे अखिलेश यादव और संगठन तैयार करेंगे चाचा शिवपाल यादव। यानि कि चुनाव लड़ने वाला अखिलेश यादव खेमे का और चुनावों में काम करने वाला शिवपाल यादव खेमे का। जी हां, यही है चाचा-भतीजे की जंग को खत्‍म कराने वाला मुलायम फार्मूला। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्‍या समाजवादी पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के इस फार्मूले से उत्‍तर प्रदेश की सत्ता में वापसी कर पाएगी। इस सवाल का जवाब पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर राजनीतिक विश्लेषक तक तलाश रहे हैं।

उत्‍तर प्रदेश में चार दिन से चढ़ा सियासी पारा अब उतरने का दावा किया जा रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच जो आरपार की जंग छिड़ी, उसे खत्म करने के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सियासी बंटवारा किया और बेटे व भाई को शांत करा दिया। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा में इस घटनाक्रम से ऐसी चिनगारी सुलगाई है जो सत्ता में वापसी के पार्टी के मंसूबों को राख के ढेर में तब्दील कर सकती है।

दरअसल चुनावों का ये जाना-पहचाना फॉर्मूला है कि जीत के लिए लोकप्रिय उम्मीदवार और ताकतवर संगठन दोनों की ही जरूरत होती है। इनमें से किसी एक की कमी या दोनों के बीच समन्वय की कमी से बड़े से बड़े दिग्गज चुनावी मैदान में धूल चाट लेते हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने सपा में जारी अंतर्कलह को खत्म करने का जो फॉर्मूला निकाला है उसने संगठन और उम्मीदवार के बीच ऐसी ही अंतर्कलह के बीज बो दिए हैं।

शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए हैं। यानी यूपी में संगठन में किस पद पर कौन सा नेता बैठेगा इसका फैसला शिवपाल ही लेंगे। कहना जरूरी नहीं है कि वे संगठन पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपने विश्वस्त नेताओं की ताजपोशी को तरजीह देंगे। दूसरी ओर चुनावों में टिकट बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गई है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को। अखिलेश भी जीत के बाद विधायकों पर अपनी पकड़ कायम रखने के लिए उन्हीं को टिकट देंगे जो उनके भरोसेमंद होंगे।

यानी उम्मीदवार अखिलेश का चहेता होगा और उसके लिए वोट मांगने, घर-घर जाकर पर्चियां बांटने, चुनाव प्रचार करने का जिम्मा जिन संगठन पदाधिकारियों के हाथ में होगा वो शिवपाल यादव के चहेते होंगे। ऐसे में चुनाव के वक्त दो दलों से ज्यादा प्रतिद्वंद्विता तो सपा के अंदर देखने को मिल सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि अगर ऐसी स्थिति हुई तो विधानसभा के चुनाव नतीजे सामने आने से पहले ही सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की हार तय हो जाएगी।  राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव इसे न समझते हों ऐसा हो नहीं सकता। उसके बाद भी अगर उन्होंने शक्तियों का ऐसा विभाजन अपने भाई और बेटे के बीच किया है, तो जानकार मानते हैं कि वो किसी बड़े बवाल की शुरुआत भर है।