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महाराष्ट्र का विपक्ष पड़ा कमजोर, कई बड़े नेता जांच के घेरों में

fadanvisमुंबई। आगामी निकाय चुनाव से पहले विधानसभा में पहली सफ़ों में बैठने वाले विपक्ष के सभी बड़े नेता लगभग ठंडे पड़ चुके हैं। चाहे वह महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण हों, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार हों या फिर वरिष्ठ एनसीपी नेता छगन भुजबल (और उनका परिवार)। सभी बड़े विपक्षी नेता सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय या एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) जैसी सरकारी एजेंसियों की तफ्तीश से गुजर रहे हैं।

राज्यपाल सी विद्यासागर ने गुरुवार को सीबीआई को पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सांसद अशोक चव्हाण के खिलाफ आदर्श स्कैम मामले में हालिया सबूतों के आधार पर फिर से जांच की अनुमति दे दी। इससे पहले के शंकरनारायण ने दिसंबर 2013 में चव्हाण के खिलाफ जांच की अनुमति नहीं दी थी। इसकी वजह उन्होंने यह बताई थी कि सीबीआई चव्हाण के खिलाफ प्राथमिक केस भी नहीं बना सकी थी।

राज्यपाल की अनुमति पर चव्हाण ने तीखी प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यपाल का यह निर्णय राज्य सरकार की तामसिक प्रवृत्तियों की झलक दिखाता है। यह एक तरह का राजनीतिक षड़यंत्र है। ये सभी राजनीतिक लाभ के हथकंडे हैं।

शरद पवार ने भी इसे आश्चर्यजनक बताते हुए कहा कि फडणवीस सरकार अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रही है। एनसीपी के नेताओं के घरों और ऑफिसों पर बार-बार छापे मारे जा रहे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। पहले तो जन कल्याण विभाग ने भुजबल को क्लीन चिट दे दी लेकिन बाद में अपने फैसले को वापस ले लिया। यह सभी कुछ काफी चौंका देने वाला है।

एसीबी ने जून 2015 में भुजबल, उनके रिश्तेदार समीर और बेटे पंकज के खिलाफ महाराष्ट्र सदन स्कैम में शामिल होने का आपराधिक मामला दर्ज किया था। हाल में ही प्रवर्तन निदेशालय ने समीर को प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के तहत गिरफ्तार किया है। कुछ ही दिनों में संभवतः भुजबल परिवार के बाकी दो आरोपियों को भी निदेशालय द्वारा समन भेजा जा सकता है।

अजीत पवार और एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील पर भी एसीबी ने अपनी नजर बनाई हुई है। दरअसल इन दोनों पर सिंचाई कार्यक्रमों में अनियमितताएं पैदा करने का संदेह है। बतौर नेता प्रतिपक्ष फडणवीस ने भुजबल, अजीत पवार और सुनील के खिलाफ एसीबी में शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन कोई खास कार्रवाई नहीं हुई लेकिन सत्ता में आने के बाद दिसम्बर में उन्होंने एसीबी को इन तीनों ही की खुली जांच करने का आदेश दे डाला। चूंकि फडणवीस गृह मंत्रालय खुद संभाल रहे हैं इसलिए एसीबी के पास जांच करने और उसकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।