Breaking News

मलाई काट रहे दागी अफसरों पर एक्शन ले पाएंगे योगी…………….

लखनऊ। किसी आइएएस के दामन पर एक-दो घोटाले के दाग हों और जेल की हवा खाने का अनुभव हो। तो फिर सोने पर सुहागा। मानो यह अफसरों की अतिरिक्त योग्यता मानी जाती रही यूपी में प्राइम-पोस्टिंग के लिए। ‘बहनजी’, बबुआ और ‘नेताजी’ के राज में ईमानदार अफसरों को कूड़े में फेंका गया और दागियों को चुन-चुनकर ऊंची कुर्सियों पर बैठाया गया। जो आइएएस-पीसीएस जितना दागी रहा उसे उतना ही वेटेज देकर प्राइम पोस्टिंग का इनाम दिया गया।

कभी अमर सिंह से करोड़ों की डीलिंग में ऑडियो टेप से बेनकाब होने वाले दीपक सिंघल अखिलेश सरकार में मुख्य सचिव बन जाते हैं। तो कभी घोटाले में जमानत पर छूटे अफसर को ट्रांसफर-पोस्टिंग वाले महकमे का प्रमुख सचिव बना दिया जाता है। योगीजी अगर आपको दावे के मुताबिक यूपी को साफ और स्वच्छ प्रशासन देना है तो चलाइए चाबुक सपा-बसपा राज के दागी अफसरों पर। दरअसल आजकल कई दागी अफसर योगी के इर्द-गिर्द मंडराने लगे हैं, लार टपक रही है उनकी नई सरकार में भी मलाईदार कुर्सी के लिए। तो योगीजी आप तो ठहरे सन्यासी आदमी। फटकने मत दीजिएगा इन दागियों को, चाहे मानक 16 की जगह 40 करोड़ प्रति किमी की दर से लखनऊ-आगरा वाली सोने की सड़क बनाने वाले नवनीत सहगल हों या फिर कोई और। मुख्यमंत्री कोई हो, सहगल साहब सबसे सटना जानते हैं। विदेश में मैनेजमेंट की पढ़ाई उनके बड़े काम आती है। कमवाना भी जानते हैं और पैसे को ठिकाने लगवाना भी जानते हैं।

आज बात ऐसे बेईमान अफसरों की, जिनके लिए हर सत्ता सदाबहार रही, लूट-खसोट के लिए। राज किसी का हो, मलाई इन्होंने ही काटी।

वर्ष 1998 में सूचना विभाग में करोड़ों का भर्ती घोटाला हुआ। फंसे थे आइएएस महेश गुप्ता। जब सीबीआई ने जांच की तो आरोप भी सही ठहरे थे। सीबीआई ने चार्जशीट भी पेश कर दी थी। कायदे से महेश गुप्ता को निलंबित होना चाहिए था, मगर बसपा सरकार में इन्हें आबकारी जैसे मालदार महकमे की कमान बहनजी ने थमा दी-कहा लूटो, जितना लूटना हो और लुटवाओ भी। बस गुप्ता जी ने पोंटी चड्ढा के कहने पर ऐसी विवादित आबकारी नीति बना दी कि अचानक पूरे यूपी में पोंटी ने शराब कारोबार का साम्राज्य स्थापित कर लिया।

चड्ढा के सारे प्रतिद्ंदी कारोबारियों को उस नीति के चलते यूपी से बोरिया-बिस्तरा समेटना पड़ा। जब 2012 में सपा की सरकार आई तो आइएएस बिरादरी को लगा कि महेश गुप्ता का अब तो काम लग गया, मगर गुप्ताजी को सपा सरकार में और ज्यादा इनाम मिला। एक साथ कई जिम्मेदारियां कंधे पर मिलीं। महेश गुप्ता ही क्यों। फेहरिश्त बड़ी लंबी है। यूपी के दर्जनों आइएएस-पीसीएस अफसर करोड़ों-अरबों के भ्रष्टाचार में घिरे हैं। सीबीआई जांच में फंसे हैं, मगर ठसक वैसी ही है, जैसे पहले थी। कुछ तो जेल भी गए, मगर मलाई बाद में काटने का मौका मिला। अब देखिए न।

मुलायम सरकार में आइएएस राकेश बहादुर नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन बने तो 2006 में होटलों के लिए प्लॉट आवंटन में बड़ा घोटाला किया। 2007 में बसपा की सरकार आई तो मायावती ने सभी प्लॉट आवंटन रद्द कर दिए। दो साल बाद राकेश बहादुर को सीएम मायावती ने सस्पेंड भी कर दिया। फिर 2010 में ईडी ने राकेश बहादुर के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मुकदमा भी दर्ज किया। मगर जैसे ही 2012 में फिर से सपा सरकार आई तो राकेश बहादुर ने मुलायम का पैर छू लिया और अखिलेश सरकार ने उन्हें उसी नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन की कुर्सी पर फिर से बैठा दिया, जहां साहब ने करोडों का प्लॉट घोटाला किया था। मामला कोर्ट पहुंचा तो मुख्यमंत्री ने एक्शन की बजाए राकेश बहादुर को अपना प्रमुख सचिव नियुक्त कर लिया।

अपने जमाने में आइएएस टॉपर रहे प्रदीप शुक्ला मायावती के शासनकाल में हुए पांच हजार करोड़ रुपये के एनआरएचएम घोटाले में जेल गए तो 2012 में सस्पेंड होना पड़ा। जब जमानत पर रिहा हुए तो सीएम अखिलेश ने झट से बहाल कर प्रमुख सचिव राजस्व की कुर्सी पर बैठा दिया। यानी उन्हें जेल जाने का इनाम दे दिया। शुक्ला ने घोटाला बसपाराज में किया और नौकरी का मजा सपा राज में भी लिया।

और मजेदार बात सुनिए। मुलायम सरकार में नोएडा में बहुचर्चित प्लॉट आवंटन घोटाला में नीरा यादव के साथ आइएस राजीव भी फंसे थे। 2012 में तीन साल की सजा हुई, पर जमानत पर रिहा हुए। फिर अखिलेश ने उन्हें प्रमुख सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक पद सौंप दिया गया। यानी जेल गए अफसर के हाथ में आईएएस-पीसीएस अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की कमान दे दी गई।

एनसीआर की सबसे प्राइम पोस्टिंग मानी जाती है नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे जैसी अथॉरिटी। अगर कोई शख्स तीनों अथॉरिटी का चीफ इंजीनियर बन जाए तो कहने की जरूरत नहीं वह मुख्यमंत्री का कितना खास होगा। बात कर रहे कालेधन के इंजीनियर यादव सिंह की। यादव सिंह चर्चा में तब आए जब 2011 में नोएडा अथॉरिटी के 954 करोड़ के ठेके महज 10 दिनों में चहेती कंपनियों को बांट दिए। अगले साल सरकार बदल गई।

अखिलेश सरकार ने जून 2012 में यादव सिंह को निलंबित करते हुए मुकदमा दर्ज कराया। सपा सरकार ने ही निलंबित किया और फिर इसी सरकार में जुगाड़ के दम पर यह इंजीनियर नवंबर 2013 में बहाल हो गया। कहते हैं कि बहाली रातोंरात हुई कि मुख्य सचिव जावेद उस्मानी से लेकर कई बड़े अफसरों को खबर नहीं हुई। इसमे नाम अखिलेश के चाचा रामगोपाल का सामने आता है। क्योंकि यादव के ठिकाने पर सीबीआई की छापेमारी में बरामद डायरी में उनके बेटे अक्षय के नाम भी मिले थे। 2006 में नोएडा में चार हजार करोड़ रुपये के घोटाले में घिरे संजीव सरन को मायावती ने निलंबित कर दिया था, मगर जैसे ही 2012 में सपा सरकार बनी तो अखिलेश नेफिर से नोएडा का सीईओ बना दिया।

जब कोर्ट के आदेश पर हटे तो फिर से अखिलेश ने कई अहम जिम्मेदारियां सौंप दीं। कहने का मतलब सपा-बसपा राज में ईमानदार अफसरों को कूड़े में फेंकने का काम चला और बेईमानों को मलाईदार कुर्सियां पर बैठाया गया। अब योगी को चुन-चुनकर दागी अफसरों को किनारे लगाना होगा, तभी साफ और स्वच्छ शासन-प्रशासन सूबे में स्थापित होगा।