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मनुस्मृति जलाने पर बंटे हैं दलित नेता

Maya manuलखनऊ। जेएनयू में मनु स्मृति की प्रतियां जलाने के बाद से इस मुद्दे पर देश भर में एक बहस छिड़ गई है। नेताओं के बयानों से लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा है। इस मुद्दे पर यूपी के दलित नेता और संगठन आपस में बंटे हुए हैं। बाबा साहब आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई थी लेकिन उनकी अनुयायी मायावती अलग राय रखती हैं। उनका कहना है कि मनुस्मृति जलाने की जरूरत नहीं है। वहीं अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता पीएल पुनिया मनु स्मृति का खुलकर विरोध कर रहे हैं।

 मनु स्मृति पर विवाद तब शुरू हुआ महिला दिवस के अवसर जेएनयू में मनुस्मृति को यह कहकर जलाया गया कि यह महिला विरोधी ग्रंथ है। इसमें महिलाओं के लिए अपमानजनक बातें लिखी हैं। जलाते समय यह तर्क दिया गया कि इस देश का संविधान बनाने वाले बाबा साहब आंबेडकर ने भी मनुस्मृति जलाई थी। इस पर दिल्ली में पत्रकारों ने बीएसपी प्रमुख मायावती की राय पूछी तो उन्होंने कहा कि मनुस्मृति को जलाने की नहीं, बल्कि भाईचारे की जरूरत है। भाईचारे से ही जातिगत भेदभाव कम होगा। उन्होंने कहा कि आज वैसी परिस्थितियां नहीं हैं, जब मनुस्मृति जलाने की जरूरत पड़े।

अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीएल पुनिया का कहना है कि मनु स्मृति में महिलाओं, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के खिलाफ बहुत सारी बातें कही गई हैं। इस ग्रंथ का विरोध भी कोई आज पहली बार नहीं हो रहा। रामास्वामी पेरियार ने भी इसका विरोध किया था। जेएनयू में भी पहली बार विरोध नहीं हुआ है। महिला दिवस पर यह कहकर इसे जलाया गया कि इसमें महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक बातें लिखी हैं। मेरे खयाल से तो ऐसे ग्रंथ का विरोध होना चाहिए।

आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लाल जी निर्मल मायावती के बयान को राजनीतिक बताते हैं। वह कहते हैं कि मायावती का बयान बाबा साहब आंबेडकर के मिशन के खिलाफ है। उसमें दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के बारे में अपमानजनक बातें लिखी हैं। जब आंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया तो मायावती उसका बचाव करने वाली कौन होती हैं। मायावती यह दावा करती हैं कि उनकी वजह से और भाईचारे से दलितों का भला हुआ है तो यह गलत है। उनकी वजह से तो जातिवाद और बढ़ा है। पहले दलित तो एक थे लेकिन मायावती ने तो उनमें भी विभेद पैदा कर दिया।

अखिल भारतीय संत गॉडगे-बाबा साहेब आंबेडकर मिशन के राष्ट्रीय महासचिव दिलीप चौधरी का कहना है कि किसी भी ग्रंथ को जलाने की जरूरत नहीं है। हर ग्रंथ में अच्छी बातें होती हैं और कुछ गलत भी हो सकती हैं। अच्छी बातों को अपना लेना चाहिए और जो गलत हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए।