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फेबिफ्लू के असर और कीमत पर ग्लेनमार्क फार्मा से डीजीसीआइ ने किया जवाब-तलब

नई दिल्ली। देश के दवा नियामक डीसीजीआइ (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स से कोविड-19 के मरीजों पर एंटी वायरल दवा फेबिफ्लू के असर के दावे पर स्पष्टीकरण मांगा है। दवा की कीमत पर भी कंपनी से सवाल किया गया है।

कंपनी को लिखे पत्र में डीसीजीआइ डॉ. वीजी सोमानी ने कहा कि एक सांसद ने जानकारी दी है कि फेबिफ्लू (फेविपिराविर) से इलाज का खर्च 12,500 रुपये के करीब आएगा। कंपनी ने जो लागत तय की है वह गरीबों व मध्यम वर्गीय लोगों के लिए सही नहीं है। साथ ही सांसद ने अपने रिप्रजेंटेशन में कहा है कि पहले से हाई बीपी, डायबिटीज जैसी बीमारियों से शिकार कोरोना मरीजों पर दवा के प्रभाव को लेकर कंपनी का दावा भी सही नहीं है। इस संबंध में पर्याप्त क्लीनिकल डाटा नहीं हैं। डीसीजीआइ ने कंपनी से इन सवालों पर स्पष्टीकरण देने को कहा है।

ग्लेनमार्क ने पिछले महीने 103 रुपये प्रति टेबलेट की कीमत के साथ फेबिफ्लू को लांच किया था। 13 जुलाई को कंपनी ने इसकी कीमत 27 फीसद कम करते हुए 75 रुपये प्रति टेबलेट करने की बात कही थी। सांसद ने ग्लेनमार्क की ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस और मीडिया रिपोर्टों के हवाले से टेबलेट की कीमत 103 रुपये बताते हुए डीसीजीआइ के समक्ष प्रजेंटेशन भेजा है। इसमें कहा गया है कि कंपनी के मुताबिक, मरीज को 14 दिन टेबलेट का सेवन करना होगा। इलाज के अलग-अलग चरण में 14 दिन में मरीज को कुल 122 टेबलेट लेनी होगी। 103 रुपये के हिसाब से यह खर्च करीब 12,500 रुपये पर पहुंच जाएगा।

तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण को भी किया पूरा 

ग्लेनमार्क ने 20 जून को फेबीफ्लू के लिए भारत के दवा नियामक से विनिर्माण और विपणन की मंजूरी मिलने की घोषणा की थी। कंपनी ने कहा है कि उसने भारत में मामूली और हल्के संक्रमण वाले कोविड-19 मरीजों के लिए तैयार दवा के तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण को भी पूरा कर लिया है।

गंभीर मरीजों के लिए लांच की गई दवा 

इस बीच, प्रमुख दवा निर्माता कंपनी बायोकॉन (Biocon) ने पिछले दिनों कहा था कि वह मध्यम से गंभीर कोविड-19 मरीजों के लिए जैविक दवा इटोलिजुमैब (Itolizumab) बाजार में लांच करेगी, जिसकी कीमत लगभग 8,000 रुपये प्रति वाइल होगी। कंपनी को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से दवा लांच करने की मंजूरी मिल गई है। इससे पहले बायोकॉन ने कहा था कि इटोलिजुमैब दुनिया का कहीं भी स्वीकृत पहला बायोलॉजिकल थेरेपी है, जिसमें कोविड-19 की गंभीर जटिलताओं से पीड़ि‍त रोगियों का इलाज किया जाता है।