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प्रियंका गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री, कहीं नफा तो कहीं नुकसान

नई दिल्ली। प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव बनाकर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने ट्रंप कार्ड खेला है. पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत बनाने के मकसद से प्रियंका को पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया है. कांग्रेस का दांव यकीनन चुनाव के मद्देनजर अहम है. इससे पार्टी को बड़े स्तर पर यूपी में फायदा मिलने की उम्मीद जगी है. मगर ज़रूरी नहीं कि ऐसा ही हो. कहीं ना कहीं ये रणनीति कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का सबब भी बन सकती है.

कांग्रेस की सोची समझी रणनीति

सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस पार्टी लगभग तीन दशक से यूपी में अपनी जमीन तलाश रही है. ऐसे में प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाना पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा दिखाई देता है. हालांकि, कुछ दिनों पहले तक गांधी परिवार की तरफ से प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने पर कोई सुगबुगाहट नहीं थी. ये बात दीगर है कि बड़ा चेहरा होने के नाते प्रियंका को पार्टी में जिम्मेदारी दिए जाने की मांग लंबे अर्से से उठती रही है. मगर, अब कांग्रेस ने यूपी में फिर से वापसी करने के लिए अपना दांव खेल दिया है. प्रियंका को यूपी में लाने के पीछे पार्टी के पास कई वजह हो सकती हैं.

कांग्रेस को मिल सकते हैं ये फायदे

पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी अपने परिवार की सियासी विरासत को आगे ले जाएंगी. उनके पार्टी में सक्रिय हो जाने से महिलाओं का कांग्रेस की तरफ रुझान भी बढ़ेगा. जो लोग आज भी इंदिरा गांधी को एक बेहतर शासक के तौर पर याद करते हैं. उन्हें कहीं ना कहीं प्रियंका में इंदिरा की झलक दिखाई देती है. अपने पिता की तरह जनता से सीधा संवाद प्रियंका की विशेषता है. ब्राह्मण समाज का वोट प्रतिशत कहीं ना कहीं कांग्रेस के पक्ष में बढ़ सकता है.

रॉबर्ट वाड्रा के बहाने कांग्रेस पर निशाना

प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा हमेशा से ही भाजपा के निशाने पर रहे हैं. अभी तक पार्टी में कहीं भी उनका सीधा दखल आधिकारिक तौर पर नहीं था. लेकिन प्रियंका के महासचिव बन जाने से विपक्ष वाड्रा से जुड़े मामलों को लेकर हमले तेज कर सकता है. जिससे प्रियंका और पार्टी दोनों की जवाबदेही बढ़ेगी.

पार्टी में दो नेतृत्व!

प्रियंका गांधी हमेशा से कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी की भूमिका को लेकर रणनीतिकार के तौर पर पर्दे के पीछे रही हैं. राहुल को पार्टी में अध्यक्ष पद तक ले जाने के पीछे भी कहीं ना कहीं बहन प्रियंका की सियासी समझ और फैसले भी वजह बने. लेकिन अब खुद उनके पार्टी में महासचिव जैसे बड़े पद पर आ जाने के बाद पार्टी में दोहरा नेतृत्व देखने को मिल सकता है, जो पार्टी के हित के खिलाफ जा सकता है.

यूपी की राह आसान नहीं

अब बात करें अगर यूपी की तो कांग्रेस पार्टी पहले ही सूबे में हाशिए पर है. विधानसभा चुनाव के दौरान सपा से हुआ कांग्रेस का गठबंधन भी अब कल की बात बन चुका है. ऐसे में अकेली कांग्रेस पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव की राह आसान नहीं होगी. प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है. जहां उनका सीधा मुकाबला योगी और मोदी से है. कांग्रेस पार्टी शायद पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई का फायदा उठाने की जुगत में थी, लेकिन सपा-बसपा का गठबंधन कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकता है. एक साथ बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन से टक्कर लेना कांग्रेस पार्टी के लिए दूर की कौड़ी साबित होगा.