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प्रचंड ने लिखा मोदी को खत, नाराज हो गया नेपाल का विपक्ष

prachandaकाठमांडो। नेपाल में मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल ने इन खबरों के बाद सरकार की कड़ी आलोचना की है कि प्रधानमंत्री प्रचंड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है जिसमें मधेसियों की मांगों के समाधान के वास्ते किए गए संविधान संशोधन समेत देश के अंदरूनी मामलों का जिक्र किया गया है। केपी शर्मा ओली की सीपीएन-यूएमएल ने उपप्रधानमंत्री बिमलेंद्र निधि द्वारा कथित रूप से ले जाए गए इस पत्र को लेकर ऐतराज जताया है।

निधि प्रचंड के विशेष दूत के रुप में 17-22 अगस्त के बीच भारत यात्रा पर गए थे। सीपीएन-यूएमएल को चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनीफाईड मार्क्सस्टि-लेनिनिस्ट) ने यहां अपनी 43वीं केंद्रीय समिति की बैठक के समापन पर एक बयान में कहा, ‘उपप्रधानमंत्री के माध्यम से प्रधानमंत्री प्रचंड द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को पत्र भेजे जाने की खबर है जिसमें संविधान संशोधन समेत हमारे अंदरूनी मुद्दों का जिक्र है।’

बयान में कहा गया, ‘ऐसी घटना हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने के प्राधिकार में दखल है जो महाभूल और आपत्तिजनक मामला है।’ मुख्य विपक्षी दल ने सरकार से इस कथित पत्र को सार्वजनिक करने की मांग की है। सीपीएन-यूएमएल ने सरकार को ऐसा कुछ नहीं करने की चेतावनी दी जो नेपाली जनता द्वारा अपने भविष्य को खुद ही आकार देने की कवायद और उनकी गरिमा को कम करे।
कुछ खबरों में बताया गया है कि मोदी से अपनी भेंट के दौरान निधि ने मधेसियों के आंदोलन से जुड़े मुद्दों, उन्हें और प्रतिनिधित्व देने समेत उनकी मांगों के हल से संबंधित संविधान संशोधन पर चर्चा की। मधेसियों का भारतीयों के साथ सांस्कृतिक एवं पारिवारिक नाता है। मधेसियों ने संविधान को लेकर भारत के साथ लगती सीमा पर व्यापार मार्गों को जाम कर दिया था जिससे सभी ओर से जमीन से घिरे नेपाल में जरूरी चीजों की किल्लत हो गई थी।

पार्टी ने कहा, ‘संविधान एक गतिशील दस्तावेज है जिसमें समय समय पर संशोधन हो सकते हैं. लेकिन जिस तरह संविधान संशोधन पर किसी खास स्थान पर चर्चा की गई वह आपत्तिजनक और बेतुका है।’ पार्टी ने कहा, ‘देश का बुनियादी कानून किसी अन्य देश की विशिष्ट चिंता के आधार पर संशोधित नहीं किया जा सकता। इससे स्थिति की जटिलता बढ़ेगी और नई समस्याएं पैदा होंगी।’ सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड द्वारा भारत और चीन में विशेष दूतों को भेजने के तौर तरीकों का विरोध किया खासकर तब जब उनकी सरकार का पूर्ण आकार ग्रहण करना और विदेश मंत्री नियुक्त करना बाकी है। प्रचंड इसी महीने दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं।