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पुण्य तिथि की पूर्व संध्या पर याद किये गये फिराक गोरखपुरी

बस्ती । ‘एक मुद्दत से तेरी याद भी न आई हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं, जैसी शायरी करने वाले अजीम शायर और लेखक फिराक गोरखपुरी जिनका असली नाम रघुपति सहाय था को उनके 40 वें पुण्य तिथि की पूर्व संध्या पर याद किया गया। बुधवार को वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति और प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में कलेक्टेªट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं के फिराक गोरखपुरी के जीवन और साहित्य से जुड़े अनेक सन्दर्भों पर विमर्श किया।
मुख्य अतिथि डा. रामदल पाण्डेय ने फिराक गोरखपुरी के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुये कहा कि वे बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में एक थे। डा. वी.के. वर्मा, डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि फिराक गोरखपुरी जितनी अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं उतने ही उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से भी मशहूर हैं। उनका जन्म 28 अगस्त सन् 1896 में गोरखपुर में हुआ था और तीन मार्च 1982 में मृत्यु हो गई थी। ‘पाल ले एक रोग नादां जिंदगी के वास्ते, सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं.’ जैसे शेर आज भी लोगों की जुबा पर आ ही जाते हैं।
अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’ मौत का भी इलाज हो शायद , जिंदगी का कोई इलाज नहीं’ जैसी शायरी को शव्द देने वाले फिराक गोरखपुरी एक शिक्षक के रूप में प्रतिष्ठित रहे।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि स्नातक के बाद उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भी हो गया था। परंतु उस समय देश-प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। और जंगे आजादी में पूरी शिद्दत से भाग लेने लगे। ऐसे महान शायर से प्रेरणा लेने की जरूरत है। वे सदैव लोगों के जेहन में जिन्दा रहेंगे।
कार्यक्रम में डा. वी.के. वर्मा, राम नरेश सिंह मंजुल, डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ पं. चन्द्रबली मिश्र, विनय कुमार श्रीवास्तव, पंकज कुमार सोनी, वी.के. मिश्र, ओम प्रकाश धर द्विवेदी, सुशील कुमार सिंह पथिक, राम कोमल सिंह, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, फूलचन्द्र चौधरी, पेशकार मिश्र, आदि ने कहा कि फिराक साहब ने उर्दू साहित्य अपनी एक खास जगह बनाई वे उर्दू के ऐसे महान शायर थे जिन्होंने उर्दू गजल के क्लासिक मिजाज को नई ऊंचाई दी। उन्होंने हर विधा में लिखा। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया और अंत में 3 मार्च 1982 उनका निधन हो गया। मुख्य रूप से दीनानाथ यादव, कृष्ण चन्द्र पाण्डेय, विशाल पाण्डेय, नवनीत पाण्डेय, ओकार चतुर्वेदी, सामईन फारूकी, गणेश मौर्य आदि शामिल रहे।