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पियरका गुलाब…… (कहानी)

ashit mishraअसित कुमार मिश्र 
गोदौलिया चौक पर चारों ओर लगी फूलों की दुकानों को देखकर शिवाकांत ने जगेसर मिसिर से कहा – लोग बेकार में बनारस को सबसे पुराना शहर कहते हैं। हमारा बनारस आज भी जवान है। जगेसर मिसिर ने कहा- भाई आज हम भी परमिला जी को गुलाब देकर इजहारे मुहब्बत करना चाहते हैं। तुम भी चलो न मेरे साथ। शिवाकांत ने कहा – ना भईया। पिछली बार गए थे तो माहेश्वर सूत्र पूछने लगीं थीं। तभी से हम कान पकङ लिए,आप ही झेलिए उनको। जगेसर मिसिर ने दुकानदार से लाल गुलाब मांगा। दुकानदार ने कहा – सांझ के पांच बजे तक लाल गुलाब टिकेगा कहीं? अब काशी भोलेनाथ के त्रिशूल पर कम गुलाब पर ज्यादा टिकी है। ये पियरका गुलाब बचा है। लेंगे तो ले जाइए। जगेसर मिसिर ने आहत होकर कहा – अच्छा तब एक पियरका गुलाब ही दे दीजिए। दालमंडी गली में चलना रस्सी पर चलने के समान होता है। किसी घर की खुली रहने वाली ऊपरी खिड़कियों से कब एक गोरी कलाई बाहर निकलेगी और उस घर का पूरा कचरा प्लास्टिक की थैली के रुप में कपार पर आ गिरेगा कहा नहीं जा सकता।कहने को तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसी गली में कहीं अखबार पढ़ रहे इश्तियाक मियां के पान की पीक कब किसी के कपड़ों पर लाल क्रांति कर जाएगी। और शिकायत करने पर प्यार भरे लहजे में सुनने को मिल जाएगा कि – क्या रजा! दालमंडी में आए और बिना हमारी मुहब्बत की निशानी लिए लौट जाओगे, घबराओ मत चरित्तर पर लगा दाग नहीं लगा है। सांढ और सीढ़ियों से बचते हुए जगेसर मिसिर ने उस घर का दरवाजा खटखटाया जिस पर बोर्ड लगा था – पंडित नंदकुमार मिश्र (पूर्व आचार्य संस्कृत विद्यालय 15 क दालमंडी वाराणसी)। दरवाजा खोलने वाली लड़की ने नमस्कार के बाद कहा – मिसिर जी! आज तो पिताजी और
माताजी दोनों घर पर नहीं हैं। जगेसर मिसिर ने खुश होते हुए कहा – परमिला जी। आज हम गुरु जी से नहीं आपसे मिलने आए हैं। परमिला ने मुस्कराते हुए कहा – अच्छा अच्छा। आइए। पानी पीते हुए जगेसर मिसिर ने शिकायत से कहा – कम से कम आज तो अपना मोबाइल आॅन रखी होतीं आप, मैं सुबहे से ट्राई कर रहा था। परमिला ने मुस्कुराते हुए पूछा – क्यों कोई खास दिन है क्या आज? अरे आज प्रपोज डे है भाई।आप कभी अपने इन किताबों की दुनिया से बाहर निकल कर तो देखिए प्रेम क्या चीज है – जगेसर ने आंखों में प्यार भरकर कहा। परमिला ने मुस्कुराते हुए कहा – अच्छा! क्या चीज है प्रेम? जगेसर को मानो मौका मिल गया उन्होंने कहा – जानतीं हैं जेठ की तपती दोपहरी में सूख रहे कुएं के पास पक्षियों का एक जोड़ा मरा पड़ा था जबकि कुएं में इतना जल था जिससे एक पक्षी की प्यास बुझ गई होती। लेकिन वो दोनों पहले तुम पी लो – पहले तुम पी लोकहते रहे और प्यास से मर गए। तभी से यह दोहा प्रचलित है – जल थोड़ा नेह घना लागो प्रीति के बान। तू पी तू पी कहि मरे एहि बिधि त्यागे प्रान।। परमिला ने मुस्कुराते हुए ही आश्चर्य से कहा – अच्छा! जगेसर को थोड़ी हिम्मत मिली। उन्होंने आगे कहा – संस्कृत की ही एक कवयित्री विज्जिका ने कहा है कि प्रेम का वास्तविक परिचय ऊर्णनाभ (मकड़ा) देता है, क्योंकि जब मकड़ी सुख की चरम स्थिति में होती है तो मकड़े का सिर काट कर खा जाती है। प्रेम ऐसा ही उत्सर्ग वाला होता परमिला जी। परमिला ने कुछ कहा नहीं। बस मुस्कुराती ही रहीं। जगेसर मिसिर ने कहा – कुछ तो बोलिए। चुप क्यों हैं आप? परमिला ने कहा – मिसिर जी मैं कुछ कहूंगी तो फिर आप कहेंगे कि मैं भाषण देती हूँ बस। लेकिन क्षमा करें मैं सहमत नहीं आपसे। जगेसर थोड़ा चौंक कर बोले – क्यों!
क्यों सहमत नहीं आप मुझसे? परमिला ने उसी दिन का अखबार दिखाते हुए कहा – देखिए इन दस सैनिकों का सियाचिन के बर्फ़ में दबने से प्राणांत हो गया।इस मार देने वाली बर्फ में रहने के पीछे तर्क पैसे नहीं हैं। पैसा तो बनारस में पान की दुकान खोल लेने वाला भी कमाता ही है। सही तर्क है प्रेम। वो भी पूरे देश के प्रति, अपनी मातृभूमि के प्रति। आपने जो भी उदाहरण बताए उन्हें मैं कम नहीं कह रही लेकिन वह वैयक्तिकता के लिए उत्सर्ग है। यह प्रेम उत्सर्ग की विशिष्टावस्था तक नहीं पहुंच सकता। प्रेम तो दर्शन का विषय है प्रदर्शन का कब से हो गया? मैं आपसे यह नहीं कह रही कि सीमा पर जाकर प्राणांत ही कर लें।प्राणांत कहीं से प्रेम का परिचायक नहीं, लेकिन अगर आवश्यक ही हो तो राष्ट्रीयता के लिए न कि प्रेयसि के लिए। यह तो मकड़ा भी कर लेता है। जगेसर मिसिर से कुछ कहते नहीं बना।आंखों से निश्छल धारा निकलने लगी और भावावेश में परमिला को बाहों में भर लिया। रोते हुए बोले – आई हेट यू परमिला जी… आई हेट यू। कुछ आंसू तो परमिला के आंखों में भी थे उन्होंने भी कहा था – सेम टु यू मिसिर जी… अब शायद दोनों का प्रेम दर्शन के उस स्तर पर पहुंच चुका था जहां किसी प्रदर्शन की आवश्यकता ही नहीं थी। जहां आई लव यू और आई हेट यू कहने का कोई मतलब ही नहीं होता। प्रेम तो वैसे भी अव्यक्त है ही। वर्णमाला के सीमित बावन अक्षर असीमित प्रेम की अभिव्यक्ति कर भी कैसे सकते थे। हां पियरका गुलाब कब का जगेसर मिसिर के हाथों से छूट कर नीचे गिर चुका था।