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न्यायिक जांच के आड़ में फ्रांसिस ज़ेवियर ने गॊवा के हिन्दुओं को किस प्रकार प्रताड़ित किया है जानते हैं आप?

गॊवा में 463 साल पुरानी सड़ी हुई एक कंकाल को बक्से में रखा गया है जो फ्रांसिस ज़ेवियर नामक ‘संत’ का है। यह कंकाल या यूँ  कहिए सड़ी हुई लाश उस ‘संत’ का है जिसने 16 वीं शताब्दी में गॊवा में न्यायिक जांच के आड़ में हिन्दुऒं को प्रताड़ित किया था। बड़ी  ही बेरहमी और बर्बरता से ‘हिन्दुओं’ को प्रताड़ित करने के कारण ही उसे ‘संत’ की उपाधी दी गयी है। गॊवा में 16 वीं शताब्दी में पॊर्चुगीसों का शासन चल रहा था। पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय तथा पोप की सहायता से फ्रांसिस ज़ेवियर को जेसुइट मिशनरी का मुखिया बनाकर 7 अप्रैल 1541 ई को भारत भेजा गया। इस मिशनरी का एक ही मकसद था और वह था हर हाल में भारत में हिन्दुओं का धर्मांतरण करवाना।

1541 ई में जब फ्रांसिस गॊवा आये तो उन्होंने देखा की जिन हिन्दुओं ने ईसाई धर्म का स्वीकार किया था वे अभी भी अपने मातृ धर्म के विधि विधानों का पालन कर रहे थे। यूरॊप के चर्च की बिगुल की एक न सुन कर इसाई धर्म में परिवर्तित हिन्दु छुप छुप कर अपने घरॊं में वेद- मंत्र का पठण कर रहे थे। जब फ्रांसिस को इस बात का पता चला की हिन्दू इसाई धर्म में परिवर्तित होने के बाद भी अपने मूल धर्म का पालन कर रहे हैं तो वह कुपित हुआ और उसने एक बर्बर कार्य को अंजाम दिया। उसने यूरॊप के अपने राजा को खत लिखा और गॊवा में न्यायिक जांच करवाने की आज्ञा मांगी।

न्यायिक जांच यानी ‘इनक्विसिशन’ के आड़ में उसने हिन्दुओं को किस प्रकार प्रताड़ित किया था ये आप नहीं जानते होंगे। बड़ा खेद होता है कि भारत में जो हिन्दुओं का हत्यारा होता है उसकी पूजा स्वयं हिन्दू ही करते हैं और उसकी आरती अर्चना करते हैं। गॊवा के चर्च में रखे गये उस सड़े कंकाल की परिक्रमा हमारे हिन्दू हर दस साल में लगनेवाले जात्रा महोत्स्तव में कर आते हैं। बिना इस बात को जाने कि उस नराधम फ्रांसिस ने इनक्विसिशन के नाम पर किस प्रकार हिन्दुओं को निर्मम रूप से प्रताड़ित किया था।

इनक्विसिशन का वह जांच और आरोपियों के लिए उसका दंड का स्वरूप बड़ा ही भयावह था। सॊच कर ही मन दुखी होता है कि उस दौर में इनक्विसिशन के इस भयावह मंज़र से गुजरनेवालों की दशा कैसी रही होगी। माना जाता है कि सत्रहवीं सदी के अंत तक गॊवा के सभी हिन्दू, मुसल्मान और यहूदियों को व्यवस्तित रूप से पूरी तरह से मतांतरण करवा गया था। कुछ लोग अपनी जान बचाकर भाग गये और कर्नाटक और केरल में जाकर बस गये।

  • इनक्विसिशन कानून के अनुसार एक बार जो ईसाई धर्म में मतांतरित हॊता है फिर कभी वह अपने मातृ धर्म के विधि-विधान का पालन नहीं कर सकता था।
  • ब्राह्मण शिखा नहीं रख सकते थे और वेद-मंत्रॊं का पठन करना वर्जित था।
  • कॊई भी हिन्दू अपने घर के आंगन में तुलसी की पूजा नहीं कर सकता था और हिन्दु त्यॊहार, विधि विधान का पालन नहीं कर सकता था।
  • हिन्दू अप्ने बच्चों की शादी हिन्दू रीती के अनुसार नहीं करवा सकते थे, हिन्दुओं के लिए मूर्ती पूजा करना वर्जित था।
  • 1541 के अंत तक गॊवा के सारे हिन्दू मंदिरों को ताला लगा दिया गया था। 1567 में लगबग 300 मंदिरॊं को तोड़ दिया गया था।
  • 15 से बड़ी उम्र के हर व्यक्ति को जबरन क्रिश्चियन पाठ पढ़ाया जाता था और हिन्दुओं को जबरन गाय और सुअर का मांस खिलाया जाता था।हिन्दुओं पर तो मानो कहर टूट पड़ा था।

ज़ेवियर ने यह ऐलान किया था कि “हिन्दु दुनिया की सबसे अपवित्र जाति है, वे जूठे और मक्कार हैं, उनकी मूर्तियां काली है और दिखने में बहुत गंदा और भयावह है, उन मूर्तियों से तेल और दुष्टता की गंदी बास आती है”। ऐसे नराधम की कंकाल की प्रदक्षिणा हमारे हिन्दू करते हैं यह हमारा दुर्भाग्य है। अब ज़रा इनक्विसिशन के नाम पर हिन्दुओं को किस प्रकार प्रताड़ित करते थे देखिए।

  • जो भी व्यक्ति छुप छुप के अपनी मूल धर्म का पालन करता था उसे कठॊर दंड दिया जाता था जिससे मानवता भी शर्मसार हॊ जाती थी।
  • जो व्यक्ति मंत्र का उच्चारण या पठन करता था उसकी जीभ को काट दिया जाता था।
  • जो हिन्दू धार्मिक ग्रंथॊं का पठण करता था, गरम लोहे की छड़ी से उस व्यक्ति की आँखों को फॊड़ दिया जाता था।
  • जो हिन्दू पूजा विधी का पालन करता था उसका नाखून उखाड़ा जाता था और उसमें मिर्च डाला जाता था।
  • हिन्दु रिवाजों का पालन करनेवालों को ज़िंदा जला दिया जाता था।
  • अपने बदन के जिस भाग पर हिन्दू तिलक लगाते थे उस भाग की त्वचा को छीला जाता था।
  • जो ईसाई धर्म में परिवर्तित होने को नकारते थे उनके सामने ही उनके बच्चों के एक एक अवयव को खंड-खंड में तोड़ा जाता था तांकि वे ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो जाये।
  • कील, या धार वाली नुकीलें चीजों को महिलाओं के सीने में चुभाया जाता था। लोहे की छड़ी को मलाशय और प्रजनन नलिका के अंदर डाला जाता था।
  • खुद ज़ेवियर कील वाले बूटॊं से हिन्दुओं को लात -घूसे मारता था और लोगों के केश में शराब डालकर उसमें आग लगाकर विकृत आनंद लेता था।
  • स्पेन और पुर्तगाल से जो यहूदी जान बचाकर भाग आये थे और गॊवा में शांती से जीवन गुजार रहे थे उन पर एक बार फिर इनक्विसिशन का कहर बरसा।
  • लिस्बन के पत्रगार में ‘The Agents of Portugues Diplomacy in India’ नामक पुस्तक में इन सभी बातों का उल्लेख है।
    ज़िम्लर के अनुसार उस 252 साल के पॊर्चुगीस शासन के काल में कभी भी किसी भी बच्चे, पुरुष या महिला को जबरन उठा लिया जाता जो अपने घर में मूर्ती रखता था या दबी आवाज़ में मंत्र या श्लोक का पठन करता था।
  • बिजापुर का आदिल शाह पोर्चुगीस के इस घिनौने काम में उनकी सहायता करता था। उसके महल को “दहशत महल” नाम से बुलाया जाता था जहां पर हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाता था।
  • ड फ्रान्सेका ने इस हिसंक और क्रूर कृत्य का वर्णन करते हुए अभिलेख लिखा था। लेकिन इस बर्बर कृत्य से जुड़े हुए साक्ष्य, अभिलेख और दस्तावेजों को नष्ट किया गया है।

क्रूरता और बर्बरता से भरा ऐसा कठॊर दंड और वह भी इसलिए की हिन्दू अपने मूल धर्म का पालन कर रहा था। मनुष्य मात्र की कल्पना से परेह है यह दंड विधी -विधान जो मानवाता को भी सर झुकाने को विवश कर देता है। ऐसे घिनौने पाप करनेवाले हिन्दुओं के अपराधी को ‘संत’ की उपाधी देकर उसके सड़े हुए कंकाल की पूजा की जाती है। हर दस साल में इस कंकाल को जनता के दर्शन के लिए रखा जाता है और उसका महोत्सव मनाया जाता है। ऐसे पापी दरिंदे के कंकाल की परिक्रमा कर उसे चूमने जानेवालों में से सबसे आगे होते हैं हमारे हिन्दू भाई-बहन बंधू। क्या कहे इसे हम विडंबना या हमारा दुर्भाग्य ?