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नवरात्रि: सजी-धजी देवी प्रतिमाएं नहीं, तेजाब से झुलसी देवियों को पूजने की हैसियत जुटाओ

कुमार सौवीर

लखनऊ। गोमतीनगर में बने आम्‍बेदकर पार्क के ठीक सामने बना है एक निहायत शांत, खुला और बेहद सहज रेस्‍टोरेंट। नाम है जायका। इस रेस्‍टोरेंट में आपको जलपान की पूरी सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन जायका का नाम केवल इसके केवल इसी  गुण के लिए ही नहीं मशहूर है। बल्कि यहां खासियत यह है कि यहां का सारा कामधाम केवल युवतियां ही सम्‍भालती हैं। चाहे वह सफाई का काम हो, प्रबंधन हो अथवा ग्राहकों के आर्डर को लेना और उन्‍हें इच्छित डिश तक परोसने तक का काम केवल यह युवतियां ही करती हैं।

लेकिन इस रेस्‍टोरेंट की इससे भी ज्‍यादा खासियत तो यह है कि यहां काम करने वाली सारी की सारी युवतियां मूलत: वह हैं, जिन्‍हें मर्दों की पाशविक-पैशाचिक हरकतों ने उन्‍हें मौत के कगार तक पहुंचा दिया था। दरअसल इन युवतियों की खूबसूरती ही उनकी सबसे बड़ी दुश्‍मन बन गयी। कुछ ऐसी भी थीं, जिन्‍हें केवल दुश्‍मनी निकालने के लिए शिकार बनाया गया। मनचले-सिरफिरे पागलों ने अपने पागलपन की सारी हदें पार करते हुए उन युवतियों के चेहरे पर तेजाब फेंक डाला। वह तो गनीमत रही कि इन युवतियों ने मौत को ही हरा दिया।

कहने की जरूरत नहीं कि तेजाब के हर एक बूंद ने इन युवतियों के हर एक सपने, कोशिश, हैसियत, उनकी जिन्‍दगी, उनकी हर सांस को मार डालने की कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन तेजाब की तड़प ने उनके दिल और दिमाग को भी बुरी तरह झुलसाया। उनके चेहरे, हाथ और बाकी शरीर के अंगों को भी बुरी तरह जला डाला। लेकिन उनके हौसलों को कोई भी नहीं मार पाया।

इन युवतियों में से किसी की ख्‍वाहिश थी कि वह डांसर बनना चाहती थी, कोई डॉक्‍टर बनना चाहती थी, किसी के सपने में किसी हीरोइन की तरह थिरकती रहती थी, कोई अफसर या पुलिस अफसर बनना चाहती थी, किसी ने यह सपने पाल रख‍े थे कि वह नन्‍हें-मुन्‍नों की शिक्षिका बनना चाहती थी। किसी ने चाहा था कि वह अपना निजी व्‍यवसाय शुरू करेगी, तो किसी ने तय किया था कि वह अपने सपने के किसी राजकुमार के साथ अपनी जिन्‍दगी बितायेगी।

मगर ऐसा हो नहीं पाया।

आज इन युवतियों ने अपने अतीत, उसके ठोकर और क्रूर नियति को परे ठेल दिया और एकजुट होकर तय किया कि कैसे भी हो, वह अपनी जिन्‍दगी एक नये सिरे से शुरू करेगी।

आपसे गुजारिश है कि एक बार इन बच्चियों से मिलने आइये जरूर। यहां आपको इन युवतियों में बेहद आत्‍मीयता का भाव मिलेगा, जबकि आपको ऐसा अहसास भी हो जाएगा कि मर्द मूलत: कितनी कमीनगी के स्‍तर तक उतर सकता है।

मैंने तो यहां की कम से कम दो बेटियों को अपनी बेटी के तौर पर प्‍यार करना शुरू कर दिया है।

इनमें से एक का नाम मैंने अपनेपन और प्‍यार से रख दिया है दे-त्‍ताली, जबकि उसका मूल नाम है:- रूपाली।

सभार : मेरी बिटिया डॉट कॉम